[1]
‘जिस राह पर हमारे कदम बढ़ रहे हैं, सोचो ! क्या सही है?
‘सफलता पाने के लिए , लक्ष्य तय करना जरूरी है,
‘जागरूक बनकर हर प्राणी यदि, अपना कर्म निभाता जाए,
‘धरातल से कुकर्म लुप्त हो जाएंगे, रामराज आना सुनिश्चित है’ !
[2]
‘वक्त’ के अनुसार चलना तो बहाना है,
‘अपने मन को ‘बहका’ रहे हो जनाब,
‘मन के कारवां’ को जरा ‘मस्ती’ में ढाल,
‘बड़ी बेफिक्र’ ‘उम्र’ कट जाएगी तेरी’ !
[3]
‘कोशिश करो , ‘ हमारे अतीत’ का प्रभाव हमारे ‘ वर्तमान ‘ पर न पड़े,
‘इससे न तो हम ‘खुश’ रह सकते हैं ,’और ना किसी को ‘प्यार’ दे सकते हैं’ !
[4]
‘अपने वर्तमान ‘ को ‘ मस्त ‘ होकर , खूबसूरती से ‘जीने का प्रयास’ करो,
‘ना ‘बुरा’ किसी का करो , ना ‘बुरा’ सोचो,’ हर किसी के ‘मन में घर’ बनाते चलो |
‘ना ‘बुरा’ किसी का करो , ना ‘बुरा’ सोचो,’ हर किसी के ‘मन में घर’ बनाते चलो |
[5]
‘मन’ को ‘ सुधारने और बदलने ‘ की ‘ तरकीब ‘ आजमाता रह,
‘बिगडे मन’ से बड़ा ‘दुश्मन’ नहीं,’सुधरे मन’ से बड़ा कोई ‘दोस्त’ नहीं’ !
‘बिगडे मन’ से बड़ा ‘दुश्मन’ नहीं,’सुधरे मन’ से बड़ा कोई ‘दोस्त’ नहीं’ !
[6]
‘और के ‘दुर्गुणों’ का ख्याल करते ही, ‘गंदगी’ अपने मन में घुस जाएगी,
‘ गुण और हीरा – मोती ‘ क्या ‘ द्वार- द्वार दिखाने जाता है कोई’ !
‘ गुण और हीरा – मोती ‘ क्या ‘ द्वार- द्वार दिखाने जाता है कोई’ !
[7]
‘बातों बातों में ‘ आपसी विश्वास’ बहुत बदलते देखा,
‘इतिहास’ साक्षी है, रात-रात में ‘इतिहास’ बदलते देखा,
‘जिंदगी की उलझनों से बिल्कुल भी मत घबराइए ,
‘सत्संग’ का साथ निभाने से ,’शैतान’ भी बदलते देखा’ !
[8]
‘अपनी ‘ गलती ‘ को सही सिद्ध करने के लिए ‘ बहस ‘ मत करो ,
‘गलती’ को सहर्ष ‘स्वीकारो’, ‘शिष्टाचार’ बनाओ, कम से कम बोलो,
‘दो लोगों के बीच कभी मत बोलो, बिना मांगे सलाह देना ‘मूर्खता’ समझो,
‘ बातें ‘ छोटी हैं परंतु बारीक हैं , ‘ जीवन पर पूरा प्रभाव डालती हैं ‘ !
[9]
‘बगुला’ ‘चतुर शिकारी’ है जो, संयम , चतुराई , साहस , सिखाता है,
‘यही कारण है, वह अपना ‘शिकार’ फांसने में ,’सफल’ हो ही जाता है’ !
‘यही कारण है, वह अपना ‘शिकार’ फांसने में ,’सफल’ हो ही जाता है’ !
[10]
‘बिना लालच’ किसी को मदद करना ,’ खांडे की धार है,
‘मुफ्त के ‘ सलाहकार ‘ घर – घर घूमते हैं आजकल’ !