[1]
जरा सोचो
‘पूर्ण विश्वास’ से ‘ भक्ति ‘ अपना रंग बिखेरती जरूर है,
‘ प्रभु’ बड़ा निराला है, ‘ बिना मांगे ‘झोली’ खूब भरता है’ !
[2]
जरा सोचो
‘चाहे किसी का ‘ ध्यान ‘ रखो , ‘ आकर्षित ‘ रहो या बडाई ‘ करो,
‘तीनों’ की जरूरत है, समयानुसार खुद को ‘परिवर्तित’ करते रहो’ !
[3]
जरा सोचो
‘ कोरोना काल’ क्या आया ?’ सारे अपने’ इधर उधर होने लगे,
‘हमारा’ जो होगा देखा जाएगा, प्रभु ! उन्हें ‘सलामत’ रखना सदा’ !
[4]
जरा सोचो
‘ यदि आपका ‘ चेहरा ‘ प्यारा , ‘ आवाज ‘ मीठी , ‘ मासूम ‘ दिल है,
‘ सभी से ‘मुस्कुरा कर’ बात करते हो,’हर दिल अजीज ‘प्राणी’ हो’ !
[5]
जरा सोचो
‘ उन्नति ‘ करते समय ‘ पीछे रह गए लोगों को ‘ भूल मत जाना,
‘समय चक्र’ में फंस कर नीचे उतरे तो, ‘स्वागत’ करेंगे आपका वो ही’ !
[6]
जरा सोचो
‘हमारी ‘आंखों’ के दीवाने हजारों हैं, ‘ फिर यह वीराना किसलिए ?
‘ शायद ‘ वो ‘ अब तक नहीं समझे , ‘ जिन्हें ‘ इनकी जरूरत है’ !
[7]
जरा सोचो
‘पुण्य का फल ‘ फौरन चाहिए , ‘ पाप का फल ‘ भुगतने को तैयार नहीं,
‘दान, दया, धर्म, करता चल, ‘कुकर्मों से पीछा छुड़ा, सब कुछ सही हो जाएगा’ !
[8]
जरा सोचो
‘ चरित्र ‘ पवित्र है तो ‘ मित्र ‘ भी ‘ सचरित्र ‘ मिल जाएंगे,
‘हाथ से हाथ’ धुलता है, ‘हरी-राम’ की जोड़ी भी मिल जाएगी’ !
[9]
जरा सोचो
‘एक समस्या घटती है ,दूसरी तैयार मिलती है,
‘ इसी ‘ कशमकश ‘ में जी रहे हैं हम सभी ‘ !
[10]
जरा सोचो
‘कौन कहता है- ‘आंख बंद करके बैठना’ ‘ध्यान की परिधि’ है,
‘यह तो ‘बंद आंखों’ को खोलने का, भगवान का ‘मूल मंत्र’ है’ !