नाम :- तारा चंद कंसल
पिता का नाम :- स्वर्गीय श्री सरदारी लाल कंसल
उम्र :- 75 वर्ष ( जन्म-तिथि 4 मार्च , 1941 )
शिक्षा :- एम काम { वर्ष 1964 } सनातन धर्म कॉलेज , मुजफ्फरनगर ( यू। पी ।)
कार्य-स्थल :- शिक्षा के बाद कुछ समय शिक्षा के छेत्र में कार्य करते –करते मैंने स्वम का ही लोहे का कारोबार प्रारम्भ कर दिया और आगे बढ़ता रहा |
जागरूकता , उत्कंठा और कुछ और जानने की भावना :-
प्रारम्भ से ही मुझे अपने देश के विषय में जानने की उत्कंठा जाग्रत रही और यह प्रयास भी किया कि भ्रमण करके भी अपने देश , उसकी संस्कृति , परिवेश , भाषा संस्कार , प्रांत , आबो-हवा , उन्नति , अवनति , व्यवहार , दिन-प्रतिदिन बदलते परिवेश आदि के बारे में जानता रहूँ | मुझे सदा ऐसा लगता था ,शायद अनेकों भारतीय अपने देश के विषय मैं बहुत जानकारी रखते हैं परंतु पूरी नहीं | मैंने देखा है हमारे देशवासी बहू-भाषी ,बहू-प्रांतीय और बहू-जातीय होते हुए भी सभी एक सूत्र मे बंधे माला के मोती समान हैं और अनेकों विविधिताओं के होते हुए भी देश हित को सर्वोपरि मानते हैं |
मौन रह कर अनेकों चले गए और अनवरत जाते भी जा रहे हैं | अपने देश के बारे मैं जो कुछ भी जान पाया हूँ क्यों न अपने देश वासियों के साथ सांझा कर लिया जाये |
पहले तो एक वर्ष तक मैं केवल अपने कुछ विचार , छंद और दोहावली के माध्यम से फ़ेस-बूक पर सभी मित्रों के सामने प्रस्तुत करता रहा | मैं साधारण व्यक्ति हूँ , आप सबके बीच रहता हूँ | जो भी भावना बनती रही चाहे देश के विषय मैं , भाषा के विषय मैं , धर्म के विषय मैं , राजनीति के विषय मैं , दुःख –दर्द , हानि -लाभ , उन्नति-अवनति , सफलता-असफलता , भाई-चारा , मानव का चिंतन , शिक्षा , ज्ञान-विज्ञान आदि , मैं दोहावली के या छंदों के माध्यम से केवल अपने मित्रों के साथ बांटता रहा \ लेकिन मन मैं पूर्ण शांति का अनुभव नहीं हुआ |
मन मैं विचार आया कि हिन्दी भाषा हमारे देश कि भाषा है , हर प्राणी उससे प्यार करता है , देश के हर कोने मैं हिन्दी जानने, समझने , बोलने और लिखने कि प्रवत्ति बढ़ती ही जा रही है | मैं अपने मन के भावों को छंदों के माध्यम से देश वासियों के सामने फ़ेस-बूक द्वारा पेश करता जा रहा हूँ तो क्यों न एक वेब-साइट के माध्यम से हर प्राणी के सामने छंदावली व दोहावली के साथ –साथ अपने देश कि अनेकों विधाओं तथा कलाओं कि जानकारी हिन्दी भाषा मैं भी लेख की विधा द्वारा भी प्रस्तुत की जाये | यद्यपि मैं अँग्रेजी भाषा का विरोधी नहीं हूँ और इस माध्यम से भी यदा-कदा आपकी सेवा करता रहूँगा |
मैं परिश्रम कर सकता हूँ , आपको मेरा प्रयास सुंदर लगेगा तो यह मेरा सौभाग्य होगा | यदि इस माध्यम से देश कि कुछ सेवा कर सका तो मैं अपने को धन्य समझुंगा |
द्वारा –तारा चंद कंसल ।