[1]
जरा सोचो
‘मुस्कुराहट’ का आगाज ‘उलझनों’ को पीछे धकेल देता है,
सदा ‘बुदबुदाते’ रहे हो तो ‘प्रभु की कृपा’ बरसती जाएगी !
[2]
जरा सोचो
‘जरूरत’ के अनुसार ‘रिश्ते’ बनाओगे तो ‘ पछताओगे ‘,
‘दिल’ से ‘रिश्ता’ निभाओगे तो ‘शानदार’ आदमी बन जाओगे !
[3]
जरा सोचो
‘समझदार’ प्राणी सदा ‘ ईश्वर ‘ की ‘ कृपा ‘ का पात्र मिलेगा,
‘घपलेबाजी’ करके ‘समझदारी’ दिखाना,’बचकानापन’ है आपका !
[4]
जरा सोचो
जो ‘मिला’ है उसका ‘सदुपयोग’ कैसे हो ? हम अभी ‘अनभिज्ञ हैं,
‘खोज पर खोज’ चालू है , ‘इंसान’- ‘इंसान’ है या ‘घनचक्कर’ !
[5]
जरा सोचो
‘भाव’ बिना- ना ‘हरि’ मिले, न ‘मिटे’ हृदय की ‘पीर’,
कितना भी ‘शौर ‘ मचाइये या बने रहें ‘ गंभीर ‘ !
[6]
जरा सोचो
‘अविश्वासी प्राणी’ न ‘प्रार्थना’ करता है, ना ‘प्रेम’ का प्रदर्शन,
‘कल्पित’ दुनियां को जीता है, ‘कलुषित’ मन का प्राणी है !
[7]
जरा सोचो
तुम्हीं ‘दोहा’, तुम्हीं ‘छंद’, तुम्हीं ‘ग़ज़ल’, तुम्हीं ‘चौपाई’ हो,
‘तुम्हें देख’ सब कुछ ‘भूल’ गए हैं, दिल की ‘महारानी’ हो ‘तुम’ !
[8]
जरा सोचो
‘सुख, शांति, प्यार, विश्वास’ की ‘ अनुभूति ‘ चाहिए तो,
अपने ‘घर- परिवार’ को ‘मंदिर’ समझ, ‘सेवा’ करे जाओ !