ज़िंदगी की अनेकों उलझनों से गुज़रा हूँ मैं ,
अनेकों थपेड़ों ने तपा है मुझे अनेकों बार |
सांत्वना का रूप धार सामने आ जाते हैं वो ,
मुस्कराते रहने की सलाह देती नज़र आती है वो
धर्म-पत्नी सिर्फ धर्म-पत्नी |
ज़िंदगी की अनेकों उलझनों से गुज़रा हूँ मैं ,
अनेकों थपेड़ों ने तपा है मुझे अनेकों बार |
सांत्वना का रूप धार सामने आ जाते हैं वो ,
मुस्कराते रहने की सलाह देती नज़र आती है वो
धर्म-पत्नी सिर्फ धर्म-पत्नी |
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