[1]
जरा सोचो
औरत की बर्दाश्त की ताकत बेहिसाब है, सब झूठ झेल जाती है ,
कुदरत का यह बेनजीर तोहफा है , मर्द को यह हजम नहीं होता,
अजीबो गरीब जुल्म ढाते हैं , उनका दया- भाव पूर्णता नदारत है ,
अगर औरत भी तुनक-मिजाज होती, आधी दुनियां ही खतम मिलती |
[2]
जरा सोचो
जब ‘मुसीबतें’ ‘पहाड़’ की तरह गिरती हैं ,’ संभलने ‘ नहीं देती,
परंतु ‘हिम्मतों’ के सामने ‘घुटने’ टेक देती हैं, क्या कभी सोचा ?
जब ‘मुसीबतें’ ‘पहाड़’ की तरह गिरती हैं ,’ संभलने ‘ नहीं देती,
परंतु ‘हिम्मतों’ के सामने ‘घुटने’ टेक देती हैं, क्या कभी सोचा ?
[3]
जरा सोचो
‘अकेला’ कब तक भागेगा ? थक हार कर एक दिन ‘रुक’ जाएगा,
‘योजनाबद्ध’ सबको साथ रखकर चला,’मंजिल’ मिलना ‘सुनिश्चित’ है !
‘अकेला’ कब तक भागेगा ? थक हार कर एक दिन ‘रुक’ जाएगा,
‘योजनाबद्ध’ सबको साथ रखकर चला,’मंजिल’ मिलना ‘सुनिश्चित’ है !
[4]
जरा सोचो
‘स्नान , ध्यान और भोजन ‘ में ‘ पूर्ण शांति ‘ रहनी चाहिए,
इनमें ‘उत्तेजना’ तुम्हारे सभी ‘उत्तम प्रयासों’ को ‘धूल’ में मिला देगी |
‘स्नान , ध्यान और भोजन ‘ में ‘ पूर्ण शांति ‘ रहनी चाहिए,
इनमें ‘उत्तेजना’ तुम्हारे सभी ‘उत्तम प्रयासों’ को ‘धूल’ में मिला देगी |
[5]
जरा सोचो
‘ मैं ‘ अपने ‘हालात’ से रूबरू होकर ‘संभल’ कर यहां तक पहुंचा,
अगर ‘ कामयाब ‘ हूं तो ‘ अपनों की कृपा ‘ का ही कमाल है !
‘ मैं ‘ अपने ‘हालात’ से रूबरू होकर ‘संभल’ कर यहां तक पहुंचा,
अगर ‘ कामयाब ‘ हूं तो ‘ अपनों की कृपा ‘ का ही कमाल है !
[6]
जरा सोचो
किसी का ‘दिल’ मत तोड़ना, ‘किनारा’ कर लेंगे सभी,
‘मूरत’ टूटते ही ‘मंदिर’ से बाहर रख दी जाती है जनाब !
किसी का ‘दिल’ मत तोड़ना, ‘किनारा’ कर लेंगे सभी,
‘मूरत’ टूटते ही ‘मंदिर’ से बाहर रख दी जाती है जनाब !
[7]
जरा सोचो
जो ‘कर्म’ समाज से काट दे हमको, ‘परेशानी का सबब’ बन जाएगा एक दिन,
ऐसे ‘ कर्म ‘ करो ताकि समाज में ‘ गुलाब ‘ की तरह ‘ महकते ‘ रहो !
जो ‘कर्म’ समाज से काट दे हमको, ‘परेशानी का सबब’ बन जाएगा एक दिन,
ऐसे ‘ कर्म ‘ करो ताकि समाज में ‘ गुलाब ‘ की तरह ‘ महकते ‘ रहो !
[8]
जरा सोचो
उनकी ‘आंखों ‘ का ‘ शरूर ‘ हमें ” शरूरी ‘ बनाता चला गया,
‘लड़खड़ाता’ देख, किसी ने जब पूछा- ‘पी’ ली, हमने कहा -हां ‘पी’ ली !
उनकी ‘आंखों ‘ का ‘ शरूर ‘ हमें ” शरूरी ‘ बनाता चला गया,
‘लड़खड़ाता’ देख, किसी ने जब पूछा- ‘पी’ ली, हमने कहा -हां ‘पी’ ली !
[9]
जरा सोचो
‘ वो ‘ बड़े ‘ चालबाज ‘ निकले, दिल में ‘ गुदगुदी ‘ मचा कर चलते बने,
‘ नजरों ‘ से बच कर ‘ किधर ‘ जाएंगे ? ‘ जहां ‘ जाएंगे ‘ हमें ‘ पाएंगे !
‘ वो ‘ बड़े ‘ चालबाज ‘ निकले, दिल में ‘ गुदगुदी ‘ मचा कर चलते बने,
‘ नजरों ‘ से बच कर ‘ किधर ‘ जाएंगे ? ‘ जहां ‘ जाएंगे ‘ हमें ‘ पाएंगे !