Home ज़रा सोचो ‘मुंह में राम बगल में छुरी ‘, ‘मुखौटा राम का’ ‘कर्म लंकेश के ” |

‘मुंह में राम बगल में छुरी ‘, ‘मुखौटा राम का’ ‘कर्म लंकेश के ” |

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जरा  सोचो 

जरा – जरा  सी  बात  पर ‘ऐंठन’ ,  ‘कठिन  जीवन’  बना  देगी ,

‘पत्ता’  पेड़  पर  ‘हरा’ रहता  है,’झड़ते’  ही  उसका ‘जीवन’ खतम |

[2]

जरा  सोचो 

कई  व्यक्ति  दूर  रहते  भी ‘ नज़दीकियों ‘ का  ‘अहसास’  करते  हैं ,

शायद  ‘स्नेह’  की  ‘अनुभूति ‘, हर  जगह  ‘रंग’  बिखेर  देती   है  |

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जारण सोचो 

सभी को ‘प्रसन्न’  नहीं  कर  सकते ,’दुःख’  देने  की कोशिश  भी  मत  करो ,

‘स्नेह  का  तालमेल’ , ‘ उल्झि  गुत्थियों ‘ को  ‘सुलझा’   ही   देती   हैं  | 

[4]

जरसोचो 

‘उम्मीद  की  डाली ‘ को  ‘सत्कर्म’ के  पानी  से  ‘संचित’  करो ,

सर्वदा  ‘प्रफुल्ल-चित्त’  प्राणी,  ‘इंसानियत’  से  जोड़े  रक्खेगा |

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जरा सोचो 

‘दुनियांदारी’   ने  हमें  ‘भुक्कड़’  बना  कर  छोड़  दिया  है  ,

‘वादे’  रोज़  भूल  जाते  हैं , ‘ जाहिल’ बन  कर  घूम  रहे  हैं |

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जरा  सोचो 

‘किस्मत’  के  द्वार  पर  कभी  ‘ताला’  शोभा  नहीं  देता ,

‘बड़ों  का  सम्मान’  झोलो  भर  देगा , ‘उदासी’ नहीं  पसरेगी |

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जरा सोचो

‘उतावलापन’, गुस्सा , और ‘घ्रणा’,  ‘जहर’  सारीखे  हैं  ,

जो  इन्हें  ‘ग्रहण[  करता  है,’सुंदर जीवन’ जी  नहीं  पाता |

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जरा  सोचो

‘मुंह  में  राम  बगल  में  छुरी ‘, ‘मुखौटा  राम  का’ , ‘कर्म  लंकेश  के’ ,

अब  ‘कंस’ ‘गीता का  उपदेश’  देते  हैं , ‘राम  का  स्वरूप’  नदारत  है  |

[9]

जरा  सोचों

‘क्रोध’  की  कर्कसता – ‘वाणी   की  मधुरता’  सोख  लेती   है ,

‘कोमलता’ साथ  छोड़  देती  है , ‘दुर्गंध’ मिलती  है  चोरों  तरफ |

 

 

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