* पीड़ित मानवता की सेवा *
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✍ नगर से बाहर एक ‘मोची’ अपनी एक छोटी सी कुटिया बना कर रहता था । पत्नी के देहान्त के बाद वह अकेला रहने पर निराश सा हो गया था । एक दिन सपने में उसे ‘ईश्वर’ ने दर्शन देते हुए कहा –
“पुत्र जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है स्वयं का परिष्कार व पीड़ित मानवता की सेवा । तुम अकेले कहाँ हो । तुम पीड़ित मानवता की सेवा करने लगो , फिर तुम्हें यह संसार अपना लगने लगेगा ” । प्रभु ने आगे उससे कहा कि
” पुत्र , मैं तुम्हारे पास आऊँगा और दर्शन भी दूँगा , बस मुझे पहचान लेना “। इतना कह कर प्रभु अन्तर्ध्यान हो गए ।
प्रसन्न मोची सुबह होते ही अपने काम में लग गया । कुछ देर बाद दरबाजे पर एक ‘बूढ़ा भिखारी’ आया । मोची ने उसे प्रेमपूर्वक भीतर बुलाया और भरपेट भोजन कराया । जाते वक्त वह उस बूढ़े मोची से बोला – तुमने प्रेमपूर्वक भोजन करा कर मेरी देह और आत्मा को तृप्त किया है । ईश्वर तुम्हारा भला करे । यह कह कर वह बूढ़ा चला गया और मोची पुन: अपने काम में लग गया ।
तभी उसने बाहर देखा कि ‘एक महिला’ भीषण ठंड़ में अपने बच्चे को सीने से चिपकाए आश्रय पाने की कोशिस कर रही थी । मोची उसे कुटिया के भीतर ले आया और गर्म पेय पिलाया , जिससे उसे कुछ गर्माहट मिली ।
वह स्त्री मोची से बोली –
“मेरे पति मर चुके हैं । घर में जो कुछ था वह पेट की खातिर बेच ड़ाला । कल मैंने अपनी आखिरी शॉल भी गिरवी रख दी । यह सुन कर मोची अन्दर से एक कम्बल लाया और महिला को देते हुए बोला – इससे अपने बेटे को ठंड़ से बचाना और हाँ गिरवी रखी शॉल को उठाने के लिए कुछ पैसे भी रख लो । उस महिला की आँखों में कृतज्ञता के आँसू टपक पड़े । वह दुआएँ देती हुई वहाँ से रवाना हो गई ।
रात होने पर मोची जब सोया तो फिर प्रभु उसके सपने में आए । मोची ने उनसे कहा –
‘ प्रभु! आपने तो कहा था कि आप मुझे दर्शन देने आएँगे , फिर आप आए क्यों नहीं ” ?
प्रभु मुस्कराए और बोले –
‘वत्स ! कल मैं दो बार तुम्हारे पास आया । पहली बार बूढ़े के रूप में और दूसरी बार दुखियारी महिला के रूप में । भले ही तुमने मुझे पहचाना नहीं , पर तुमने मेरा ध्यान वैसे ही रखा , जैसे मुझे पहचानने पर रखते । मैं तुम्हारी सेवा से अत्यन्त ही प्रसन्न हूँ । तुम्हारा सदैव भला होगा “। यह कह कर प्रभु अन्तर्ध्यान हो गए ।
‘वास्तव में प्राणी मात्र की सेवा ही सच्ची ईश्वर की आराधना है ’।
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जय गुरुवर जय महाकाल
हम बदलेंगे , युग बदलेगा