[1]
‘ हम अक्सर खुन्नस की आग में झुलसे पड़े रहते हैं ‘,
‘कभी तो इंसानियत का दामन पकड़ लेते ,’इंसान बन जाते’|
[2]
‘माँ-बाप की उम्र कुछ भी हो’,’बच्चों का सहयोग’ ‘जवान बनाए रखता है’,
‘ नजरंदाजी और फिक्र ‘ फितरती हैं ‘ , ‘ बूढ़ा बना देती हैं उन्हें ‘|
[3]
‘उम्मीद का दामन मत फैलाओ’,
‘टूट जाओगे यारों ‘,
‘ज़िंदादिल इंसान बनो’ ,
‘किसी के काम आते रहो ‘|
[4]
‘सभी कहते हैं ‘सत्कर्म करते रहो तो’,
‘स्वर्ग मिलेगा ‘,
‘मैं कहता हूँ ‘माँ-बाप की सेवा करो’,
‘स्वर्ग यहीं पर है ‘|
]5]
‘जीभ कतरनी है तो किसी का गला भी काट सकती है’,
‘सुमरण में लगते ही लंपटबाजी करना भूल जाएगी भाई ‘|
[6]
‘अनेकों हैं जिनको ‘माँ-बाप के होने का’ ‘अहसास ही नहीं होता’,
‘ उनके न होने पर रोते हैं ,’ तभी अहसास जागता है उनका’|
[7]
‘ जिंदगी के रंगमंच का हर कोई किरदार है ‘,
‘ऐसा किरदार निभाओ ताकि ,’देर तक ताली बजें ‘|
[8]
‘अक्सर हम ‘ इंसान का उपयोग ‘ और ‘ दौलत से प्यार ‘ करते हैं ‘,
‘अगर ‘इंसान से प्यार’ और ‘दौलतका उपयोग’ कर लेते तो क्या जाता’?
[9]
‘बुढ़ापे में काया, ‘अंत समय ममता-माया, पीछा छुड़ा ही लेती है ‘,
‘ शुरु से ही सत्संग का रंग चढ़ा लेता , तो दुःख नहीं पाता ‘|
[10]
‘सुख ‘ मांगने ‘ से नहीं’ ‘ जागने ‘ पर ही मिलता है ‘,
‘सुकर्मों’ की दुंदभी बजा’,’खिंचा चला आएगा तेरी तरफ’|