:- तेरे भीतर क्या है यह सोच ,बाहरी दिखावे पर मत जा :-
एक वैश्या मरी और उसी दिन उसके सामने रहने वाला बूढ़ा सन्यासी भी मर गया , संयोग की बात है । देवता लेने आए सन्यासी को नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जाने लगे । संन्यासी एक दम अपना डंडा पटक कर खड़ा हो गया , तुम ये कैसा अन्याय कर रहे हो ? मुझे नरक में और वैश्या को स्वर्ग में ले जा रहे हो , जरूर कोई भूल हो गई है तुमसे , कोई दफ्तर की गलती रही होगी , पूछताछ करो ..मेरे नाम आया होगा स्वर्ग का संदेश और इसके नाम नर्क का । मुझे परमात्मा का सामना कर लेने दो , दो दो बातें हो जाए, सारा जीवन बीत गया शास्त्र पढ़ने में — और ये परिणाम । मुझे नाहक परमात्मा ने धोखे में डाला ।
उसे परमात्मा के पास ले जाया गया , परमात्मा ने कहा इसके पीछे एक गहन कारण है, वैश्या शराब पीती थी , भोग में रहती थी , पर जब तुम मंदिर में बैठ कर भजन गाते थे , धूप दीप जलाते थे , घंटियां बजाते थे तब वह सोचती थी कब मेरे जीवन में यह सौभाग्य होगा , मैं मंदिर में बैठ कर भजन कर पाऊंगी कि नहीं , वह ज़ार – जार रोती थी , और तुम्हारे धूप दीप की सुगंध जब उसके घर में पहुंचती थी तो वह अपना अहो -भाग्य समझती थी , घंटियों की आवाज सुन कर मस्त हो जाती थी ।
लेकिन तुम्हारा मन पूजा पाठ करते हुए भी यही सोचता कि वैश्या है तो सुंदर पर वहां तक कैसे पंहुचा जाए ? तुम हिम्मत नही जुटा पाए तुम्हारी प्रतिष्ठा आड़े आई –गांव भर के लोग तुम्हें संयासी मानते थे । जब वैश्या नाचती थी , शराब बंटती थी , तुम्हारे मन में वासना जगती थी तुम्हें रस था खुद को अभागा समझते रहे .
.इसलिए वैश्या को स्वर्ग लाया गया और तुम्हें नरक में । वेश्या को विवेक पुकारता था तुम्हें वासना , वह प्रार्थना करती थी तुम इच्छा रखते थे वासना की । वह कीचड़ में थी पर कमल की भांति ऊपर उठती गई और तुम कमल बन कर आए थे कीचड़ में धंसे रहे ।
असली सवाल यह नहीं कि तुम बाहर से क्या हो ,,,असली सवाल तो यह है कि तुम भीतर से क्या हो ?
भीतर ही निर्णायक है ।