Home ज़रा सोचो “मन में राम बगल में छुरी “!” मनवा सोच जरा ” | प्रेरणादायक प्रसंग !

“मन में राम बगल में छुरी “!” मनवा सोच जरा ” | प्रेरणादायक प्रसंग !

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:- तेरे  भीतर   क्या   है  यह  सोच  ,बाहरी  दिखावे  पर  मत   जा  :- 

एक   वैश्या   मरी   और   उसी   दिन   उसके   सामने   रहने       वाला   बूढ़ा   सन्यासी   भी   मर   गया  ,  संयोग   की   बात   है  ।  देवता           लेने   आए   सन्यासी   को   नरक   में   और   वैश्या   को   स्वर्ग   में   ले            जाने   लगे  ।  संन्यासी   एक   दम   अपना   डंडा   पटक   कर   खड़ा   हो            गया   ,  तुम   ये   कैसा   अन्याय   कर   रहे   हो  ?  मुझे   नरक   में  और          वैश्या   को   स्वर्ग   में   ले   जा   रहे   हो  ,  जरूर   कोई   भूल   हो   गई  है         तुमसे   ,  कोई   दफ्तर   की   गलती   रही   होगी  ,   पूछताछ   करो ..मेरे           नाम   आया   होगा   स्वर्ग   का   संदेश   और   इसके   नाम   नर्क    का ।           मुझे   परमात्मा   का   सामना   कर   लेने   दो  ,   दो   दो   बातें   हो  जाए,        सारा   जीवन   बीत   गया   शास्त्र   पढ़ने   में  —  और   ये   परिणाम  । मुझे      नाहक   परमात्मा   ने   धोखे   में   डाला  । 

उसे   परमात्मा   के   पास   ले   जाया   गया  ,  परमात्मा   ने   कहा   इसके   पीछे   एक   गहन   कारण  है,  वैश्या   शराब   पीती   थी  ,  भोग   में   रहती   थी ,  पर   जब   तुम    मंदिर   में   बैठ  कर   भजन   गाते   थे  ,  धूप   दीप   जलाते   थे  ,  घंटियां  बजाते   थे   तब   वह   सोचती   थी   कब   मेरे   जीवन   में   यह   सौभाग्य   होगा  ,   मैं   मंदिर   में   बैठ  कर   भजन   कर   पाऊंगी   कि   नहीं  ,  वह   ज़ार –  जार  रोती   थी  ,  और   तुम्हारे   धूप   दीप   की   सुगंध   जब   उसके   घर   में     पहुंचती   थी   तो   वह   अपना   अहो -भाग्य   समझती   थी  ,   घंटियों   की     आवाज   सुन  कर   मस्त   हो   जाती   थी  । 

लेकिन   तुम्हारा   मन पूजा   पाठ   करते   हुए   भी   यही   सोचता   कि   वैश्या   है   तो   सुंदर   पर वहां    तक   कैसे   पंहुचा   जाए  ?  तुम   हिम्मत   नही  जुटा  पाए तुम्हारी  प्रतिष्ठा   आड़े   आई –गांव   भर   के   लोग   तुम्हें   संयासी   मानते   थे  ।  जब वैश्या   नाचती   थी  ,  शराब   बंटती   थी  ,  तुम्हारे   मन   में   वासना   जगती   थी     तुम्हें   रस   था   खुद   को   अभागा   समझते   रहे  .

.इसलिए   वैश्या  को   स्वर्ग   लाया   गया   और   तुम्हें   नरक   में  ।  वेश्या   को   विवेक  पुकारता   था   तुम्हें   वासना  ,  वह   प्रार्थना   करती   थी   तुम   इच्छा   रखते   थे   वासना   की  ।  वह   कीचड़   में   थी   पर   कमल   की   भांति   ऊपर  उठती गई  और   तुम   कमल   बन  कर  आए   थे   कीचड़   में   धंसे   रहे  । 

असली सवाल    यह   नहीं   कि   तुम   बाहर   से   क्या   हो ,,,असली   सवाल   तो   यह   है   कि   तुम   भीतर   से   क्या   हो  ?
भीतर   ही   निर्णायक   है  ।

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