Home ज़रा सोचो ‘मंदिर’ में रोज़ ‘मांगने’ जाते हो , कभी ‘मिलने ‘भी जाया करो “| कुछ प्रेरणादायक छंद |

‘मंदिर’ में रोज़ ‘मांगने’ जाते हो , कभी ‘मिलने ‘भी जाया करो “| कुछ प्रेरणादायक छंद |

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जरा सोचो
‘प्यार का लॉलीपॉप’ चटा कर, प्यार का ‘इजहार,’ ‘इंसाफी नहीं,
‘दो दिलों’ के  बीच  ‘वफा’ की ‘मुकम्मल  किताब’ होनी  चाहिए’ !

[2]

जरा सोचो
हम ‘खुद’ को  नहीं  देखते,  तभी ‘स्वयं  से  दूर’  रहते  हैं,
दूसरों को देखने की ‘गंदी आदत’ है, तभी ‘असंतुष्ट’ प्राणी है’ !

[3]

जरा सोचो
अगर ‘घर का मुखिया’ समझदार है, तो दुनियां ‘सम्मान’ करेगी,
‘मुखिया’  उधड- बीन  मैं ‘जीवन’ जीता  रहा, कौन  पूछेगा  उन्हें’ ?

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जरा सोचो
‘सुह्रदयी  प्राणी ‘  समाज  में ‘ गुलाब ‘  की  भांति  महकता  है ,
‘शंका और आशंका’ का जमावड़ा नहीं होता, ‘स्वाभाविक’ रूप रहता है उसका ‘ !

[5]

जरा सोचो
कभी ‘अभाव’  ने  सताया, कभी  ‘प्रभाव’  ने  सताया,
‘आचार संहिता’ भूलकर ‘ज्वालामुखी’ बन गए हैं हम’ !

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जरा सोचो
‘मंदिर’ में रोज ‘मांगने’ जाते हो ,कभी ‘मिलने’ भी जाया करो,
‘ बिना मांगे’ सब कुछ देने में, वह कभी ‘आलस’ नहीं करता’ !

[7]

जरा सोचो
‘किस्मत’ क्या  चीज  है ? जब  पल भर में  लोग ‘बदल’ जाते  हैं,
‘जिधर  पलड़ा’ भारी  लगा, उधर  की  ओर ‘मुड़’ जाते  हैं  लोग !

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जरा सोचो
‘वक्त’  बुरा  है  तो  सही  भी  आएगा , सिर्फ  ‘ इंतजार ‘  की  दरकार  है ,
‘वक्त’ चलायमान है, किसी की नहीं सुनता, तुम भी ‘समयानुसार’ ढलने लगो ‘ !

[9]

जरा सोचो
‘ संतोष धन’ के स्वामी को ‘सबसे अमीर’ कहते हैं,
‘दयावान’  होना  भी ‘सर्वोत्तम  प्राणी’ की  श्रेणी  है’ !

[10]

जरा सोचो
‘समय  और  भाग्य ‘  दोनों  बदलते  हैं ,’ शांति  का  घूंट’  पीना  चाहिए,
‘बेहूदगी’ की सीढ़ियों पर मत चढो, ‘मानवीय मूल्यों’ की कीमत समझो’ !

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