‘भगवान के स्मरण को ही ” परम – धन ” और “परम लाभ” समझो ” ! ध्यान से पढ़िये मित्रों !
“प्रेरणादायक प्रसंग “
जीव के लिये कल्याणकारी भजन , स्मरण ही परम धन है |
भजन में श्रद्धा करो । यह विश्वास करूं कि भजन से ही सब कुछ होगा । भजन के बिना न संसार के क्लेश मिटेंगे , न विषयों से वैराग्य होगा , न भगवान का प्रभाव और महत्व समझ में आएगा और न परम श्रद्धा ही होगी । भगवान की प्राप्ति भजन के बिना सर्वथा असंभव है । सच्ची बात तो यह है कि जब तक भगवान की प्राप्ति नहीं होती , तब तक क्लेशों का पूर्ण रूप से नाश भी नहीं हो सकता ।
भगवान की प्राप्ति के इस कार्य में जरा भी देर न करो । ऐसा मत सोचो कि’ अमुक काम हो जाएगा , इस प्रकार की स्थिति हो जाएगी , तब भगवान का भजन करूंगा , यह तो मन का धोखा है । संभव है , तुम्हारी वैसी स्थिति हो ही नहीं , तुम पहले ही मर जाओ अथवा यदि स्थिति हो जाय तो फिर दूसरी स्थिति की कल्पना कर लो । इससे अभी जिस स्थिति में हो , इसी स्थिति में भगवान की प्राप्ति के लिये भजन में लग जाओ । मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्तव्य वास्तु यही है ।
एक बात और है , जब तक तुम भजन के लिये किसी संसारी स्थिति की प्रतीक्षा करते हो , तब तक तुम वास्तव में भजन करना चाहते ही नहीं । यदि भजन करना चाहते तो भजन से बढ़ कर ऐसी कौन-सी स्थिति है जिसके लिये तुम भजन को रोक कर पहले उसे पाना चाहते हो । संसार के धन -जन , मान-सम्मान , पद- गौरव सभी विनाशी है , ये सदा किसी के नहीं रहते और , जिन्हें यह सब प्राप्त हैं , वे क्या सुखी हैं , उन्हें क्या शांति मिल गई है , उनके जीवन का उद्देश्य क्या सफल हो रहा है , बे क्या इन्हें प्राप्त करके भजन में लग गए हैं , बल्कि इसके विपरीत अनुभव तो यह कहता है कि ज्यों-ज्यों सांसारिक संग्रह बढ़ता है , त्यों त्यों क्लेश , कामना , द्वेष , अशांति , अज्ञान , असावधानी और विषया सक्ति शक्ति बढ़ती है । और , विषया सक्त पुरुष कभी सुख- शांति के भंडार परमात्मा के मार्ग पर नहीं चलना चाहता ।
विषय -सुख में फंसे हुए मनुष्य को तो एक प्रकार से पागल या मूढ़ समझना चाहिये जो काल्पनिक और विनाशी सुख के मोह में सच्चे सुख से वंचित रह जाता है । सच्चा सुख तो भगवान में है , जो भगवान का स्वरूप ही है । उसको छोड़ कर क्षण स्थायी , परिवर्तनशील दुःख भरे भोगों में सुख चाहना तो भ्रम ही है । बुद्धि में से इस भीषण भ्रम को निकालना पड़ेगा ।
विषय- सुख के भ्रम से ही विषयों में आसक्ती हो रही है । इस विषयासक्ती के कारण ही मनुष्य दूसरों में दोषा रोपण करता है , जान-बूझ कर झूठ बोलता है , पर पीड़ा और हिंसा करता है , पर स्त्रियों में पाप बुद्धि करता है , दंभ और पाखंड रचता है एवं नाना प्रकार के नए-नए तरीके निकाल कर अपनी पाप वासना को सार्थक करना चाहता है ।
इस विषयासक्ति का सर्वथा नाश तो तब होगा जब तुम अखिल ऐश्वरी सौंदर्य और माधुर्य के समुद्र भगवान को जान कर उनमें आसक्त हो जाओगे । तब तक शास्त्र और संतों की वाणी पर श्रद्धा करके , विषयों की नश्वरता और क्षण भंगुरता प्रत्यक्ष देख कर विषयी और विषय प्राप्त पुरुषों की मानसिक दुर्दशा पर विचार करके चित्त को विषयों से हटाते रहो और सर्व सुखस्वरूप श्री भगवान में लगाते रहो ।
भगवान के रहस्य और प्रभाव की बातों को , उनकी लीलाओं को उनके गुणों को श्रद्धा पूर्वक सत्पुरुषों से सुनो । उनके नाम का जप करो और यह चेष्टा सच्चे मन से करते रहो कि जिससे एक क्षण भर के लिये भी मन से उनका विस्मरण न हो । प्रत्येक क्षण उनकी मधुर स्मृति बनी ही रहे ।
जब भूलो , तब पश्चाताप करो याद आने पर फिर न भूलने की प्रतिज्ञा करो । भगवान के स्मरण को ही परम धन और परम लाभ समझो । सच्ची बात भी यही है —भगवान का स्मरण ही जीवन का एकमात्र परम धन है । सम्पन्नारायण-स्मृतिः
जय श्री राधे राधे
