Home कविताएं धार्मिक कविताएँ भगवान के दरबार मे सिर झुका’,’किसी और के दर पर नहीं

भगवान के दरबार मे सिर झुका’,’किसी और के दर पर नहीं

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‘भगवान के दरबार मे सिर झुका’,’किसी और के दर पर नहीं’ ,
‘जब इधर-उधर हाथ फैलाएगा ‘ तो , ‘खाली हाथ ही आना होगा ‘ ,
‘बिना भेद’ ,’ बिना बताए’ , ‘बिना कहे’ , ‘वो सबकी झोली भरता है’ ,
‘बिना तमन्ना के’ ‘तू नहीं जाता वहाँ’,’वो फिर भी’ ‘तेरा ख्याल रखता है’ |

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