किताबों को खंगालने से हमें यह पता चला कि ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ‘ के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी नें 14 फ़रवरी 1931 को लार्ड इरविन के सामने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए मर्सी पिटीसन दायर की थी ताकि उन्हें फांसी न दी जाये और कुछ सजा भी कम की जाए l लार्ड इरविन ने तब मालवीय जी से कहा कि आप कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष है इसलिए आपको इस पिटीसन के साथ नेहरु , गाँधी और कांग्रेस के कम से कम 20 अन्य सदस्यों के पत्र भी लाने होंगे l
जब मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के बारे में नेहरु और गाँधी से बात की तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमति नहीं दी l इसके अतिरिक्त गाँधी और नेहरु की असहमति के कारण ही कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अपनी सहमति नहीं दी l
रिटायर होने के बाद लार्ड इरविन ने स्वयं लन्दन में कहा था कि ”यदि नेहरु और गाँधी एक बार भी भगत सिंह की फांसी रुकवाने की अपील करते तो हम निश्चित ही उनकी फांसी रद्द कर देते , लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ कि गाँधी और नेहरु को इस बात की हमसे भी ज्यादा जल्दी थी कि भगत सिंह को फांसी दी जाए l”
प्रोफ़ेसर कपिल कुमार की किताब के अनुसार ”गाँधी और लार्ड इरविन के बीच जब समझौता हुआ उस समय इरविन इतना आश्चर्य में था कि गाँधी और नेहरु में से किसी ने भगत सिंह , राज गुरु और सुखदेव को छोड़ने के बारे में चर्चा तक नहीं की l” इरविन ने अपने दोस्तों से कहा कि ‘ हम यह मान कर चल रहे थे कि गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी यह बात मान लेंगे l
भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को फांसी लगाने की इतनी जल्दी तो अंग्रेजों को भी नही थी जितनी कि गाँधी और नेहरु को थी क्योंकि भगत सिंह तेजी से भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे जो कि गाँधी और नेहरु को बिलकुल रास नहीं आ रहा था l यही कारण था कि वो चाहते थे कि जल्द से जल्द भगत सिंह को फांसी दे दी जाये , यह बात स्वयं इरविन ने कही है l इसके अतिरिक्त लाहौर जेल के जेलर ने स्वयं गाँधी को पत्र लिख कर पूछा था कि ‘इन लड़कों को फांसी देने से देश का माहौल तो नहीं बिगड़ेगा ?‘ तब गाँधी ने उस पत्र का लिखित जवाब दिया था कि ‘ आप अपना काम करें कुछ नहीं होगा l’ इस सब के बाद भी यदि कोई कांग्रेस को देश भक्त कहे तो निश्चित ही हमें उस पर गुस्सा भी आएगा और उसकी बुद्धिमत्ता पर रहम भी l