*भक्ति में विश्वास*
कृष्ण भोजन के लिए बैठे थे । एक दो कौर मुँह में लेते ही अचानक उठ खड़े हुए । बड़ी व्यग्रता से द्वार की तरफ भागे , फिर लौट आए उदास और भोजन करने लगे ।
रुक्मणी ने पूछा ,” प्रभु ,थाली छोड़कर इतनी तेजी से क्यों गये ? और इतनी उदासी लेकर क्यों लौट आये ?”
कृष्ण ने कहा , ” मेरा एक प्यारा राजधानी से गुजर रहा है । नंगा फ़कीर है । इकतारे पर मेरे नाम की धुन बजाते हुए मस्ती में झूमते चला जा रहा है । लोग उसे पागल समझकर उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं । उस पर पत्थर फेंक रहे हैं । और वो है कि मेरा ही गुणगान किए जा रहा है । उसके माथे से खून टपक रहा है । वह असहाय है , इसलिए दौड़ना पड़ा “
” तो फिर लौट क्यों आये ?”
कृष्ण बोले , ” मैं द्वार तक पहुँचा ही था कि उसने इकतारा नीचे फेंक दिया और पत्थर हाथ में उठा लिया । अब वह खुद ही उत्तर देने में तत्पर हो गया है । उसे अब मेरी जरूरत न रही । जरा रूक जाता , * मेरे ऊपर पूर्ण विश्वास रखता तो मैं पहुँच गया होता *
यही पर आकर हम अपने भगवान् पर विश्वास खो देते है । भगवान् जरा सी परीक्षा लेते है और हम धैर्य नहीं रख पाते । इसलिए अपनी भक्ति को दृढ बनाना चाहिए ।