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प्रेरणादायक कहानी- अन्धी माँ

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एक  गाँव  में  एक  अन्धी  औरत  रहती  था |  उसका  बेटा  था  जिसे  उसने  बड़े ‘ लाड   और  प्यार’  से  पाला-पौसा था | समय  पर  तैयार  करना ,  खाना  बना  कर  खिलना  और  स्कूल  भेजना  उसका  नित्य  का  काम   था |

 

वह  लड़का  जब  स्कूल  जाता  था  तो  बच्चे  उसे  “ अन्धी  का  बेटा “  कह  कर  चिडाते  रहते  थे |  रोजाना  हर  बात   पर उसे  ये  शब्द  सुनने  को  मिलते  थे  ,” अन्धी  का  बेटा |  इस  कारण  वह  अपनी  माँ  से  चिड़ता  था और  माँ  को  कहीं  भी  साथ  लेकर  जाने  में  हिचकिचाता  था | “’ उसे “ अन्धी  का  बेटा ‘“ सुनना  नापसंद  था  |

 

उसकी  माँ  ने  कभी  इसका  बुरा  नहीं  माना  |  अपने  बेटे  को  खूब  पढ़ने  का  मौका  दिया |  अन्धी  होते हुए  भी  घरों  में  काम  करती , बेटे  पर  खूब  मेहनत  करती |  धीरे- धीरे  उसे  इस  लायक  बना  दिया  कि  वह  अपने  पैरों  पर खड़ा  हो  सके |

 

प्रभु  बड़ा  दयालु  है  , उस  लड़के  कि  मेहनत  और  उसकी  माँ  का  आशीर्वाद  उसके  काम  आया  और  वह  किसी  सरकारी  विभाग  में  एक  बड़ा  अधिकारी   बन   गया  |  शादी   भी   हो  गयी  | उसके   बाद   वह  अपनी   पत्नी   को   साथ   लेकर  नौकरी  पर   दूसरे  शहर  में  रहने  चला  गया |

 

बहुत  दिनों  तक  वह  लड़का  अपनी  माँ  से  मिलने  नहीं  गया  और  न  ही  कभी  पत्र  द्वारा हालचाल  पूछा | माँ  को  अच्छी  तरह   पता  था  कि  उसका  बेटा ,  अन्धी  होने  के  कारण  उससे  नफरत  करता  है | माँ  कि  ममता – ममता  होती  है  |  एक  दिन  उसका   मन  बेटे  को  देखने  को  अधीर  हो  गया  और  कुछ  बिना  विचार  करे  अपने  बेटे  से   मिलने  शहर  में  गयी |  घर  के  द्वार  पर  खड़े  चौकीदार  से  कहा  “  ‘बेटा’ ,  ‘तुम्हारे  साहब घर  पर  होंगे , उनसे  जा  कर  कहो , माँ  उससे  मिलने  आई  है “’ |

 

गेटकीपर  घर  में  अंदर  गया और  बताया “ ‘ कोई  माँ  आपसे  मिलने  आई  है ‘| साहब  ने  कहा , ‘ उनसे  कहो  मैं  घर  पर  नहीं  हूँ “’ | गार्ड  ने  बूढ़ी  माँ  से  कहा कि ‘ वो  अभी घर  पर  नहीं  हैं ‘ ,| यह  सुन  कर  माँ  वापस  चल  दी  और  बाहर  किसी  दूसरे  कौने  पर  बैठ  गयी | बेटे  कि   बेरुखी   देख  कर   मन   बहुत   दुखी   हुआ   परंतु   लाचार   हो   कर   वापिस   लौट  पड़ी |

 

थोड़ी  देर  पश्चात  जब  लड़का  अपनी  कार   से  ऑफिस  के  लिए  चला  तो  उसने  थोड़ी  दूर  चलते  ही  देखा  कि  सामने  सड़क  पर  बहुत  भीड़  लगी है | जानने  के  लिए  कि  वहाँ  भीड़  क्यों  लगी  है , देखने  चला  गया |  उसने  देखा  कि  उसकी माँ  वहाँ  मरी  पड़ी  थी  और  उसकी  एक  मुट्ठी  बंद  थी  जिसमें  कुछ  सामान  था |  उसने  मुट्ठी  खोल  कर  देखी , एक  पत्र  था  जिसमें  लिखा  था :-

‘ बेटा , जब   तू   बहुत   छोटा   था   तो   खेलते   वक्त   तेरी   आँख   में   सरिया   धंस   गया   था  और   तू   अंधा   हो    गया   था   तब   मैंने  तुम्हें  अपनी  आँखे  दे  दी  थी ‘ |

 

यह  पढ़  कर  लड़का  ज़ोर-ज़ोर  से  रोने  लगा   परंतु  अब  उसकी  माँ  उसे  देखने  को  दुनियाँ  में  नहीं  थी |  ‘ माँ-बाप  का  कर्ज़  हम  कभी  चुका  नहीं  सकते |

‘                                     ‘मेरा  निष्कर्ष  “’

बूढ़े  माँ –बाप की  अवलेहना  स्वम  पर  अविश्वास  का  प्रतीक है,

उनके  ज्ञान  और  अनुभव  का  सदुपयोग करो, सेवा  भाव जगाओ,

उन्हें उपेक्षित  महसूस  कराना , संवाद  का  सिलसिला जारी न रखना ,

तुम्हें  किसी  दिन झुलसा देगा , ठगा  सा  महसूस  करोगे  एक दिन |

जय  हिन्द  , जय  हमारा  भारत

 

 

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