‘मुझे लंगूर कहते हो ‘ , ‘ चलो कुछ तो समझा मुझे ‘ तुमने हजूर ,
‘लंगूर’ तो ‘राम के काम आया था’ ,’तुम तो’ ‘खुद के दुश्मन बने बैठे हो ‘ |
[2]
‘जो कान्हा का बन कर रह गया’ , ‘बेड़ा पार हो गया उसका ‘ ,
‘तू भी उसे अपना बना लेता ‘, ‘कल्याण ही कल्याण हो जाता ‘ |
[3]‘राधे ! तुम कहाँ चली गयी थी’ , ‘कुछ छणों में बेचैन हो गया था मैं ‘ ,
‘लुका-छिपी का खेल”खेल रही हो’ या’ बैचन करने में’ ‘मज़ा आता है तुझे’ |