Home जीवन शैली “पुण्यों का फल ” प्रभु देते जरूर हैं ! ” एक सार कथा “

“पुण्यों का फल ” प्रभु देते जरूर हैं ! ” एक सार कथा “

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*पुण्यों का मोल*

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एक  व्यापारी  जितना  अमीर  था  उतना  ही  दान-पुण्य  करने  वाला ,  वह  सदैव  यज्ञ-पूजा  आदि  कराता  रहता  था।

एक  यज्ञ  में  उसने  अपना  सब  कुछ   दान  कर  दिया।  अब  उसके  पास  परिवार  चलाने  लायक  भी  पैसे  नहीं  बचे  थे ।

व्यापारी  की  पत्नी  ने  सुझाव  दिया  कि  पड़ोस  के  नगर  में  एक  बड़े  सेठ  रहते  हैं ।  वह  दूसरों  के  पुण्य  खरीदते  हैं ।

आप  उनके  पास  जाइए  और  अपने  कुछ  पुण्य   बेचकर  थोड़े  पैसे  ले  आइए ,  जिससे  फिर  से  काम- धंधा  शुरू  हो  सके ।

पुण्य  बेचने  की  व्यापारी  की  बिलकुल  इच्छा  नहीं  थी ,  लेकिन  पत्नी  के  दबाव  और  बच्चों  की  चिंता  में  वह  पुण्य  बेचने                                                 को  तैयार  हुआ ।  पत्नी  ने  रास्ते  में  खाने  के  लिए  चार  रोटियां  बना कर  दे  दीं ।

व्यापारी  चलता-चलता  उस  नगर  के  पास  पहुंचा  जहां  पुण्य  के  खरीदार  सेठ  रहते  थे ।  उसे  भूख  लगी  थी ।

नगर  में  प्रवेश  करने  से  पहले  उसने  सोचा  भोजन  कर  लिया  जाए।  उसने  जैसे  ही  रोटियां  निकालीं  एक  कुतिया  तुरंत  के                                         जन्मे  अपने  तीन  बच्चों   के  साथ  आ  खड़ी  हुई ।

कुतिया  ने  बच्चे  जंगल  में  जन्म  दिए  थे ।  बारिश  के  दिन  थे  और  बच्चे  छोटे  थे ,  इसलिए  वह  उन्हें  छोड़कर   नग र में  नहीं                                        जा   सकती   थी । 
व्यापारी   को  दया  आ  गई ।  उसने  एक  रोटी  कुतिया  को  खाने  के  लिए  दे  दिया ।
कुतिया  पलक  झपकते  रोटी  चट  कर  गई  लेकिन  वह  अब  भी  भूख  से   हांफ  रही  थी ।

व्यापारी   ने   दूसरी  रोटी ,  फिर  तीसरी  और  फिर  चारो  रोटियां  कुतिया  को  खिला  दीं।  खुद  केवल  पानी  पीकर  सेठ  के  पास  पहुंचा ।

व्यापारी  ने  सेठ  से  कहा  कि  वह  अपना  पुण्य  बेचने  आया  है ।  सेठ  व्यस्त  था ।  उसने  कहा  कि  शाम  को  आओ ।

दोपहर  में  सेठ  भोजन  के  लिए  घर  गया  और  उसने  अपनी  पत्नी  को  बताया  कि  एक  व्यापारी  अपने  पुण्य  बेचने  आया  है ।  उसका                           कौन  सा  पुण्य  खरीदूं ।

सेठ  की  पत्नी  बहुत  पतिव्रता  और  सिद्ध  थी ।  उसने  ध्यान  लगा  कर   देख   लिया   कि  आज  व्यापारी  ने  कुतिया  को  रोटी  खिलाई  है ।

उसने  अपने  पति  से  कहा  कि  उसका  आज  का  पुण्य  खरीदना  जो  उसने  एक  जानवर  को  रोटी  खिला कर  कमाया  है ।  वह  उसका  अब                       तक  का  सर्वश्रेष्ठ  पुण्य  है ।

व्यापारी  शाम  को  फिर  अपना  पुण्य  बेचने  आया ।  सेठ  ने  कहा –  आज  आपने  जो  यज्ञ  किया  है  मैं  उसका  पुण्य  लेना  चाहता  हूं ।
व्यापारी  हंसने  लगा ।  उसने  कहा  कि  अगर  मेरे  पास  यज्ञ  के  लिए  पैसे  होते  तो  क्या  मैं  आपके  पास  पुण्य  बेचने  आता !

सेठ  ने  कहा  कि  आज  आपने  किसी  भूखे  जानवर  को  भोजन  कराकर  उसके  और  उसके  बच्चों  के  प्राणों  की  रक्षा  की  है ।  मुझे  वही                          पुण्य  चाहिए ।
व्यापारी  वह  पुण्य  बेचने  को  तैयार  हुआ ।  सेठ  ने  कहा  कि  उस  पुण्य  के  बदले  वह  व्यापारी  को  चार  रोटियों  के  वजन  के  बराबर                              हीरे- मोती  देगा ।

चार  रोटियां  बनाई  गईं  और  उसे  तराजू  के  एक  पलड़े  में  रखा  गया ।  दूसरे  पलड़े  में  सेठ  ने  एक  पोटली  में   भर कर  हीरे-जवाहरात  रखे।
पलड़ा  हिला  तक  नहीं ।  दूसरी  पोटली  मंगाई  गई ।  फिर  भी  पलड़ा  नहीं  हिला ।

कई  पोटलियों  के  रखने  पर  भी  जब  पलड़ा  नहीं  हिला  तो  व्यापारी  ने  कहा –  सेठजी ,  मैंने  विचार  बदल  दिया  है .  मैं  अब  पुण्य  नहीं                       बेचना  चाहता ।

व्यापारी  खाली  हाथ  अपने  घर  की  ओर  चल  पड़ा ।  उसे  डर  हुआ  कि  कहीं  घर  में  घुसते  ही  पत्नी  के  साथ  कलह  न  शुरू  हो  जाए ।

जहां  उसने  कुतिया  को  रोटियां  डाली  थी ,  वहां  से  कुछ  कंकड़-पत्थर  उठाए  और  साथ  में  रख कर   गांठ  बांध  दी । 

घर  पहुंचने  पर  पत्नी  ने  पूछा  कि  पुण्य  बेचकर  कितने  पैसे  मिले  तो  उसने  थैली  दिखाई  और  कहा  इसे  भोजन  के  बाद  रात  को  ही                        खोलेंगे  ।  इसके  बाद  गांव  में  कुछ  उधार  मांगने  चला  गया ।

इधर  उसकी  पत्नी  ने  जब  से   थैली  देखी  थी  उसे  सब्र  नहीं  हो  रहा  था ।  पति  के  जाते  ही  उसने  थैली  खोली ।
उसकी  आंखे  फटी  रह  गईं ।  थैली  हीरे-जवाहरातों  से  भरी  थी ।

व्यापारी  घर  लौटा  तो  उसकी  पत्नी  ने  पूछा  कि  पुण्यों  का  इतना  अच्छा  मोल  किसने  दिया  ?  इतने  हीरे -जवाहरात  कहां  से  आए ??
व्यापारी  को  अंदेशा  हुआ  कि  पत्नी  सारा  भेद  जान  कर  ताने  तो  नहीं  मार  रही  लेकिन ,  उसके  चेहरे  की  चमक  से  ऐसा  लग  नहीं  रहा  था ।

व्यापारी  ने  कहा –  दिखाओ  कहां  हैं  हीरे-जवाहरात ।  पत्नी  ने  लाकर  पोटली  उसके  सामने  उलट  दी ।  उसमें  से  बेश कीमती  रत्न  गिरे । व्यापारी                हैरान  रह  गया ।
फिर  उसने  पत्नी  को  सारी  बात  बता  दी ।  पत्नी  को  पछतावा  हुआ  कि  उसने  अपने  पति  को  विपत्ति  में  पुण्य  बेचने  को  विवश  किया ।

दोनों  ने  तय  किया  कि  वह  इसमें  से  कुछ  अंश  निकाल  कर  व्यापार  शुरू  करेंगे ।  व्यापार  से  प्राप्त  धन  को  इसमें  मिला कर  जन-कल्याण                     में  लगा  देंगे ।

ईश्वर  आपकी  परीक्षा  लेता  है ।  परीक्षा  में  वह  सबसे  ज्यादा  आपके  उसी  गुण  को  परखता  है  जिस  पर  आपको  गर्व  हो ।
अगर  आप  परीक्षा  में  खरे  उतर  जाते  हैं  तो  ईश्वर  वह  गुण  आपमें  हमेशा  के  लिए  वरदान  स्वरूप  दे  देते  हैं ।

अगर  परीक्षा  में  उतीर्ण  न  हुए  तो  ईश्वर  उस  गुण  के  लिए  योग्य  किसी  अन्य  व्यक्ति  की  तलाश  में  लग  जाते  हैं ।

इसलिए  विपत्तिकाल   में   भी   भगवान  पर  भरोसा  रखकर  सही  राह  चलनी  चाहिए ।  आपके  कंकड़-पत्थर  भी  अनमोल  रत्न  हो  सकते  हैं ।

*न  डर  रे  मन  दुनिया  से*
*यहाँ  किसी  के  चाहने  से  नहीं*
*किसी  का  बुरा  होता  है,*
*मिलता  है  वही ,  जो  हमने  बोया  होता  है ,*
*कर  पुकार  उस  प्रभु  के  आगे .. क्योकि  सब  कुछ  उसी  के  बस में  होता  है।।*

🌹🙏🏻🚩 *जय सियाराम* 🚩🙏🏻🌹
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