Home Uncategorized ‘नशा’ – ‘शराब ‘ का नहीं , ‘जिंदगी’ जीने का होना चाहिए ‘ कुछ हमारी कुछ तुम्हारी ‘|

‘नशा’ – ‘शराब ‘ का नहीं , ‘जिंदगी’ जीने का होना चाहिए ‘ कुछ हमारी कुछ तुम्हारी ‘|

2 second read
0
0
385

[1]

जरा सोचो
जब  भी  ‘ खालीपन ‘  लगा , ‘ खुद ‘  से  मुलाकात  होने  लगी,
‘जुझारुपन’ के कारण ‘खुद’ को जानने का ‘मौका’ नहीं मिला !

[2]

जरा सोचो
‘तुम  सही  मैं  गलत’  का  ‘मंत्र’  ‘चित्त  की  चिंताओं’  को  हर  लेगा,
‘जलते  अंगारों’  को  शांत  कर  देगा,  ‘मंत्रमुग्ध’  कर  देगा  तुम्हें !

[3]

जरा सोचो
‘नशा-‘ ‘शराब’  का  नहीं, जिंदगी  ‘ जीने ‘  का  होना  चाहिए,
‘उम्र  के  पड़ाव’ को  पछाड़  कर, बस  ‘दिल’ धड़कना  चाहिए !

[4]

जरा सोचो
हर  ‘ तपिश ‘  को  ‘ झेलने ‘  का  मादा  होना  चाहिए,
‘सूरज’ जितना भी ‘तपे’,’समुद्र’ कभी ‘सूखा’ नहीं करते !

[5]

जरा सोचो
जब ‘जिम्मेदारियां’ बढ़ने लगी, ‘ख्वाहिशों’ पर ‘झुर्रियां’ पड़ने लगी,
‘चौबे  जी’- ‘छब्बे  जी’ बनने  चले  थे, ‘दुबे  जी’  बन  कर  रह  गए !

[6]

जरा सोचो
जहां ‘ रिश्तों ‘ का ‘ मतलब ‘ ‘ मतलब ‘ के ‘ रिश्ते ‘ हों,
वहां ‘दौलत’ दहकती है, ‘ ईमान’ की ‘कीमत’ नहीं रहती !

[7]

जरा सोचो
‘ खामोशी’ बहुत  कुछ ‘बयां’ कर देती  है, ‘समझने वाला’ तो  हो,
‘चकाचौंध’ के ‘नंबरदार’ हैं सारे, ‘नकली’ को ‘असली’ समझते  हैं !

[8]

जरा सोचो
तेरे ‘आंसू’ और ‘गम’ बडे ‘ढीठ’  हैं, अपना ‘पता’ नहीं  देते,
‘उन्हें’ कभी का ‘घोट कर’ पी गया होता, तुम्हें ‘हंसा’ देता !

[9]

जरा सोचो
हम जिन्हें ‘खासमखास’ समझते  थे, वहां  भी ‘थाली  में  छेद’  था,
‘मतलब’ से ‘दिल’ लगाते थे, ‘जरूरत’ पर ‘खिसकते’ पाए गए सारे !

[10]

जरा सोचो
‘नींदों’ में ‘ख्वाबों का  सिलसिला’ सोने  नहीं  देता,
‘करवट’ बदल- बदल  कर हम ‘रातें’ गुजार  देते  हैं !

Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…