(1)
जरा सोचो
तेरा ‘एहसास’-‘ एहसास’ कराता है तुम मेरे साथ हो ,
कौन कहता है ? हम ‘अकेले’ हो कर जी रहे हैं आजकल |
(2)
जरा सोचो
‘नम्र व्यवहार’, ‘मजबूत रिश्तो’ की आधारशिला है ,
वह ‘रिश्तो’ को क्या निभाएगा ,जो सदा बरसाता ही ‘आग’ हो |
(3)
जरा सोचो
‘जिम्मेदारी’ उठाने में ‘तकलीफ’ आती है, ‘सिखाती’ बहुत कुछ है,
‘आदमी ‘हारता’ नहीं , ‘ संपूर्ण व्यक्तित्व ‘ निखर जाता है |
(4)
जरा सोचो
न ‘ सिर’ झुकाने की ‘आदत’ न ‘आंसू’ बहाने की आदत ,
शिद्दत से ‘कर्मशील’ रहकर केवल ‘मानवता’ से ‘स्नेह’ की आदत !
(5)
जरा सोचो
‘जिंदादिली’ से जीने का ‘शौक’ बरकरार रखिए जनाब,
‘बड़ी उम्र’ के पड़ाव भी ,’ परास्त’ होने से नहीं मुकरेंगे !
(6)
जरा सोचो
‘दुनियां’ बदलती है , ‘कामयाब कर्मों’ की ‘फेहरिस्त’ चाहिए,
‘नाकामयाब लोगों को अपने ‘ फैसले’ बदलते खूब देखा है |
(7)
जरा सोचो
”जीतने की जिद’ ‘परिस्थितियों’ को बिगड़ने नहीं देती,
‘ठोकर’ तो खा सकते हैं परंतु ‘ उम्र’ थका नहीं सकती !
(8 )
जरा सोचो
‘ख्वाबों का जखीरा’ किसी को आराम से जीने नहीं देता,
यही जीवन का ‘स्वांग’ है जो ‘गले’ से उतारे नहीं उतरता !
(9)
जरा सोचो
‘गोबर’ बहुत ढो लिया , अब ‘लाजवाब’ और ‘बेहतरीन’ की प्यास है,
न ‘राम’ बनना है न ‘राम’ की तलाश, सही ‘इंसान’ बनने की तमन्ना है !
(10)
जरा सोचो
हर हाले सूरत ‘मुस्कुराता’ हूं तो , सब ‘दर्द’ खिसक लेते हैं ,
‘रोनी सूरत’ बदकिस्मती लाती है , ‘मैं’ कभी ऐसा नहीं करता !
(11)
जरा सोचो
किसी को कितना भी ‘सुंदर सुझाव’ दो, सब ‘अपने हिसाब’ से चलते हैं,
एक ‘मेंढक’ को ‘सोने के पालने’ में बिठाया, कूद कर ‘ नाली’ में जा गिरा !