—धर्माचरण…*
एक बहु घर की सफाई कर रही थी,
उसके मुंह में सुपारी थी.. पीक आया तो गलती से पास ही यज्ञवेदी में थूक दिया।
पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उसका थूक तत्काल स्वर्ण में बदल गया।
अब तो वह प्रतिदिन जान-बूझकर वेदी में थूकने लगी। और उसके पास धीरे-धीरे स्वर्ण बढ़ने लगा।
महिलाओं में बात तेजी से फैलती ही है
कई और महिलाएं भी अपने अपने घर में बनी यज्ञवेदी में थूक-थूककर सोना उत्पादन करने लगी।
धीरे-धीरे पूरे गांव में यह सामान्य चलन हो गया!
सिवाय उसी गावँ की एक सीधी-साधी महिला के…
उस महिला को भी अनेक दूसरी महिलाओं ने उकसाया, समझाया.. *“अरी.. तू क्यों नहीँ थूकती?”*
वो महिला बोली- *”जी बात यह है कि मै अपने पति की अनुमति बिना यह कार्य हरगिज नहीँ करूंगी और जहाँ तक मुझे ज्ञात है वे इसकी अनुमति कभी भी नहीँ देंगे।”*
किन्तु ग्रामीण महिलाओं ने ऐसा वातावरण बनाया कि आखिर उसने एक रात डरते-डरते अपने पति को पूछ ही लिया।
उसका पति एक धर्मपरायण और सच्चा इंसान था।
*“खबरदार जो ऐसा किया तो, यज्ञवेदी क्या थूकने की जगह है?”*
पति की गरजदार चेतावनी के आगे बेबस वह महिला चुप हो गई।
पर जैसा वातावरण था और जो चर्चाएं होती थी, उनसे वह साध्वी स्त्री बहुत व्यथित रहने लगी।
खासकर उसके सूने गले को लक्ष्य कर अन्य स्त्रियां अपने नए-नए कण्ठहार दिखाती तो वह अन्तर्द्वन्द में घुलने लगी।
पति की व्यस्तता और स्त्रियों के उलाहने उसे धर्मसंकट में डाल देते।
वह सोचती *“यह शायद मेरा दुर्भाग्य है.. अथवा कोई पूर्वजन्म का पाप कि एक सती स्त्री होते हुए भी मुझे एक रत्ती सोने के लिए भी तरसना पड़ता है।”*
*“शायद यह मेरे पति का कोई गलत निर्णय है।”*
*”इस धर्माचरण ने मुझे दिया ही क्या है?”*
*“जिस नियम के पालन से दिल कष्ट पाता रहे, उसका पालन क्यों करूं?”*
और हुआ यह कि वह बीमार रहने लगी।
पतिदेव इस रोग को ताड़ गए।
किन्तु उसे गलत काम को हरगिज़ ही नही करना था।
उन्होंने एक दिन ब्रह्ममुहूर्त में ही सपरिवार ग्राम त्यागने का निश्चय किया।
गाड़ी में सारा सामान डालकर वे रवाना हो गए।
सूर्योदय से पहले पहले ही वे बहुत दूर निकल जाना चाहते थे।
*किन्तु.. यह क्या…???*
ज्योंही वे गांव की सीमा से बाहर निकले।
पीछे भयानक विस्फोट हुआ और पूरा गांव धू-धूकर जल रहा था।
सज्जन दम्पत्ति अवाक् रह गए!
और तब उस स्त्री को अपने पति का महत्त्व समझ आ गया।
वास्तव में इतने दिन पूरा का पूरा गांव बचा रहा तो केवल इस कारण कि उसका परिवार गांव की परिधि में था।
उनके अकेले धर्माचरण के कारण पूरा गाँव ही सुरक्षित था।
*धर्माचरण करते रहे!*
*कुछ अधिक पाने के लालच में इंसान अपने पास का ही बहुत कुछ खो बैठता है!*
*इसलिए लालच से बचें!*
*न जाने किसके भाग्य से आपका जीवन सुखमय व सुरक्षित है!*
*परहित धर्म का भी पालन करते रहिए!*
*क्योंकि व्यक्तिगत स्वार्थ पतन का कारण बनता है!*
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