Home जीवन शैली “देश से बाहर रहने वालों की व्यथा – शायद सब की कहानी है “! “एक विचारणीय प्रश्न ‘|

“देश से बाहर रहने वालों की व्यथा – शायद सब की कहानी है “! “एक विचारणीय प्रश्न ‘|

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*मैं   मकान    लेकर    कहीं    जाऊंगा    थोड़े    ही*

कल  अपनी  पुरानी  सोसाइटी  में  गया  था ।  वहां  मैं  जब  भी  जाता  हूं  ,  मेरी  कोशिश  होती  है  कि  अधिक  से  अधिक  लोगों  से 

मुलाकात  हो  जाए।

कल  अपनी  पुरानी  सोसाइटी  में  पहुंच  कर  गार्ड  से  बात  कर  रहा  था  कि  और  क्या  हाल  है  आप  लोगों  का ,  तभी  मोटरसाइकिल

पर  एक  आदमी  आया  और  उसने  झुक  कर  प्रणाम  किया ।

*“भैया, प्रणाम।”*

मैंने  पहचानने  की  कोशिश  की ।  बहुत  पहचाना- पहचाना  लग  रहा  था ।  पर  नाम  याद  नहीं  आ  रहा  था ।  उसी  ने  कहा,

*”भैया  पहचाने  नहीं ?  हम  बाबू   हैं  , बाबू  ।  उधर  वाली  आंटी  जी  के  घर  काम  करते  थे ।”*

मैंने  पहचान  लिया ।  अरे  ये  तो  बाबू  है  ।  ‘सी ब्लॉक वाली आंटी जी  का  नौकर ।

*“अरे  बाबू  ,  तुम  तो  बहुत  तंदुरुस्त  हो  गए  हो ।  आंटी  कैसी  हैं ?”*

बाबू  हंसा,–

*“आंटी  तो  गईं ।”*

*“ गईं ?  कहां  गईं ?  उनका  बेटा  विदेश  में  था ,  वहीं  चली  गईं  क्या  ?  ठीक  ही  किया   उन्होंने  ।  यहां  अकेले  रहने  का  क्या  मतलब  था?”*

अब  बाबू  थोड़ा  गंभीर  हुआ ।  उसने  हंसना  रोक  कर  कहा ,

*“ भैया ,  आंटी जी  भगवान  जी  के  पास  चली  गईं ।”*

*“  भगवान  जी  के  पास ?  ओह !  कब ?”*

बाबू  ने  धीरे  से  कहा ,

*“दो  महीने  हो  गए।”*

*“क्या  हुआ  था  आंटी  को?”*

*“ कुछ  नहीं ।  बुढ़ापा  ही  बीमारी  थी ।  उनका  बेटा  भी  बहुत  दिनों  से  नहीं  आया  था  ।  उसे  याद  करती  थीं ।  पर  अपना  घर  छोड़  कर 

वहां  नहीं  गईं ।  कहती  थीं  कि  यहां  से  चली  जाऊंगी  तो  कोई  मकान  पर  कब्जा  कर  लेगा ।  बहुत  मेहनत  से  ये  मकान  बना  है ।”*

*“ हां , वो  तो  पता  ही  है ।  तुमने  खूब  सेवा  की ।  अब  तो  वो  चली  गईं ।  अब  तुम  क्या  करोगे ?”*

अब  बाबू  फिर  हंसा,

*” मैं  क्या  करुंगा  भैया  ?  पहले  अकेला  था ।  अब  गांव  से  फैमिली  को  ले  आया  हूं ।  दोनों  बच्चे  और  पत्नी  अब  यहीं  रहते  हैं ।”*

*“ यहीं  मतलब  उसी  मकान  में ?”*

*“ जी  भैया ।  आंटी  के  जाने  के  बाद  उनका  बेटा  आया  था ।  एक  हफ्ता  रुक  कर  चले  गए ।  मुझसे  कह  गए  हैं  कि  घर  देखते  रहना ।

चार  कमरे  का  इतना  बड़ा  फ्लैट  है ।  मैं  अकेला  कैसे  देखता ?  भैया  ने  कहा  कि  तुम  यहीं  रह  कर  घर  की  देखभाल  करते  रहो । वो  वहां

से  पैसे  भी  भेजने  लगे  हैं ।  और  सबसे  बड़ी  बात  ये  है  कि  मेरे  बच्चों  को  यहीं  स्कूल  में  एडमिशन  मिल  गया  है ।  अब  आराम  से  हूँ  ।

कुछ-कुछ  काम  बाहर  भी  कर  लेता  हूं  ।  भैया  सारा  सामान  भी  छोड़  गए  हैं ।  कह  रहे  थे  कि  दूर  देश  ले  जाने  में  कोई  फायदा  नहीं ।”*

मैं  हैरान  था ।  बाबू  पहले  साइकिल  से  चलता  था ।  आंटी  थीं  तो  उनकी  देखभाल  करता  था ।  पर  अब  जब  आंटी  चली  गईं  तो  वो  चार

कमरे  के  मकान  में  आराम  से  रह  रहा  है । 
आंटी  अपने  बेटे  के  पास  नहीं  गईं  कि  कहीं  कोई  मकान  पर  कब्जा  न  कर  ले ।

बेटा  मकान  नौकर  को  दे  गया  है ,  ये  सोच  कर  कि  वो  रहेगा  तो  मकान  बचा  रहेगा ।

मुझे  पता  है ,  मकान  बहुत  मेहनत  से  बनते  हैं ।  पर  ऐसी  मेहनत  किस  काम  की ,  जिसके  आप  सिर्फ  पहरेदार  बन  कर  रह  जाएं ?

मकान   के  लिए  आंटी  बेटे  के  पास  नहीं  गईं ।  मकान  के  लिए  बेटा  मां  को  पास  नहीं  बुला  पाया । 
सच  कहें  तो  हम  लोग  मकान  के  पहरेदार  ही  हैं ।

जिसने  मकान  बनाया  वो  अब  दुनिया  में  ही  नहीं  है ।  जो  हैं ,  उसके  बारे  में  तो  बाबू  भी  जानता  है  कि  वो  अब  यहां  कभी  नहीं  आएंगे ।

मैंने  बाबू  से  पूछा  कि ,

*”तुमने  भैया  को  बता  दिया  कि  तुम्हारी  फैमिली  भी  यहां  आ  गई  है ?”*

*“इसमें  बताने  वाली  क्या  बात  है  भैया   ?  वो  अब  कौन  यहां  आने  वाले  हैं ?  और  मैं  अकेला  यहां  क्या  करता ?  जब  आएंगे  तो  देखेंगे

पर जब मां थीं तो आए नहीं, उनके बाद क्या आना? मकान की चिंता है, तो वो मैं कहीं लेकर जा नहीं रहा। मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*

बाबू फिए  फिर  हंसा  |

बाबू से मैंने हाथ मिलाया। मैं समझ रहा था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा। वो मकान मालिक हो गया है।

हंसते-हंसते मैंने बाबू से कहा,

*“भाई, जिसने ये बात कही है कि* 
_*मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है,*_
*उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा।”*

बाबू ने धीरे से कहा,

*“साहब, सब किस्मत की बात है।”*

मैं वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है।

लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी…

*“मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही?मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं।”*

_मैं  सोच रहा था, मकान लेकर कौन जाता है? सब देखभाल ही तो करते हैं।_

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