[1]
जरा सोचो
‘सुधार’ लाने का ‘प्रयास’, फिर ‘सुधार’, ‘पूर्ण ऊर्जा’ का स्रोत है ,
अगर हर प्राणी ऐसे ‘प्रयास’ करे, ‘ देश का उद्धार’ निश्चित है !
[2]
जरा सोचो
‘स्वर्ग’ होता तो है, मगर शायद बहुत ‘छोटा’,
जब भी ‘तलाशा’ ,’मां की आंखों ‘ में दीखा !
[3]
जरा सोचो
‘आंखें’- ‘आंसुओं ‘ को बाहर निकलने नहीं देती,
‘आंसू’- ‘ताजा सांस’ लेने को आतुर, करें तो क्या करें ?
[4]
जरा सोचो
‘ दिल’ में उधम मचा है , चुपके से घुस गए हैं ‘वो’ ,
किसी को ‘बताएं’ तो ‘मरे’,’ना बताए’ तो भी ‘मरे’ !
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जरा सोचो
‘मस्तीखोर’ को ‘उदासी’ नहीं सताती, हर मौसम में ‘मस्त’ मिलते हैं,
‘मस्तों की हस्ती’ जिंदा दिखती है, ‘जबरदस्ती’ जिंदा नहीं रहते |
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जरा सोचो
दूसरों को ‘खुश’ देख कर ‘खुश’ रहा करो, अपना ‘दुख’ प्रकट मत करो,
हर पल ‘ मुस्कुराना ‘ मत भूलो , ‘श्रेष्ठतम ‘ जीवन को जिओ !
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जरा सोचो
‘तू’ कौन है ? हर बार ‘दिल’ में ‘मिठास’ भर कर चला जाता है,
तेरा ‘अंदाजे सलीका’ झकझोर कर ‘मस्त’ बना देता है हमको !
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