[1]
‘बचपन गया, बड़प्पन दिखाओ,
‘प्यार की पींगे बढ़ाओ,
‘अब बड़े हो गए हो,
‘समाज को ‘गरिमा’ का एहसास कराओ’ !
[2]
‘चिडिया’ पाली उड़ गई, ‘ गिलहरी’ पाली वह भी चली गई,
‘ मैंने एक पेड़ लगाया , एक दिन दोनों वापस आ गई ,
‘गंभीर बन कर शांत रहो’ सदा ‘सुकर्मों ‘ में रत रहते रहो ,
‘नफरत’ करने वाले सभी,धीरे- धीरे अपने ‘रास्ते’ बदल देंगे’ !
[3]
‘वह सिरहाने आकर क्या बैठ गए ? नए गुल खिलने लगे ,
‘वह सिर्फ ‘तहकीकात’ करने आए थे,’वह ‘जिंदा’ है या ‘मर’ गए कहीं’ !
‘वह सिर्फ ‘तहकीकात’ करने आए थे,’वह ‘जिंदा’ है या ‘मर’ गए कहीं’ !
[4]
‘खयाल आते ही ‘हिचकियां’ आने लगी,
‘उनकी ‘रूबरू’ होते तो क्या होता जनाब ?
‘उनकी ‘रूबरू’ होते तो क्या होता जनाब ?
[5]
‘प्रकृति’ से विमुख तथा ‘दिनचर्या’ अस्त-व्यस्त दिखती है,
‘ सभ्यता ‘ की दौड़ में ‘ चैन और नींद ‘ दोनों उड़ गई ‘ !
‘ सभ्यता ‘ की दौड़ में ‘ चैन और नींद ‘ दोनों उड़ गई ‘ !
[6]
‘हमारे विचार ‘ और ज्ञान ‘, सारे बंधन तोड़ देते हैं,
‘मस्तिष्क’ सीमाएं पार करके चमतकृत कराता है ,
‘प्रेरणापूर्ण शक्तियां’ कुविचारों को आधारहीन बनाती हैं,
‘निरंतर उच्चता व अलौकिकता’ ही हमारी सहचरी है’ !
[7]
‘अगर कामचोर- ‘मेहनतकश’ से नफरत करता है,
‘ अगर मजदूर – ‘ मालिक ‘ से नफरत करता है,
‘कुरूप नारी – ‘ सुंदर नारी ‘ से नफरत करती है,
‘इस नफरत की वजह, खुदको ‘कुंठित’ हुआ समझो’ !
[8]
‘जीत गए तो कई अपने पीछे छूट जाएंगे,
‘ हार गये तो अपने ही पीछे छोड़ जाएंगे,
‘कसमकस जिंदगी के यह संभव पढ़ाव हैं,
‘हार – जीत के जंजाल में फंसी है जिंदगी ‘ !
[9]
‘कसौटी पर कसें , काम करते आपको ‘ ऊब ‘ क्यों होती है ?
‘दिल की सुनना , मनकी करना, ‘जवान’ बनाए रक्खेगा तुम्हें’ !
‘दिल की सुनना , मनकी करना, ‘जवान’ बनाए रक्खेगा तुम्हें’ !