दानें_दानें_पर_लिखा_हैं_खाने_वाले_का_नाम 🍚
🍄एक सेठ जी थे भगवान “कृष्ण” जी के परम भक्त थे । निरंतर उनका जाप और सदैव उनको अपने दिल में बसाए रखते थे ।
वो रोज स्वादिष्ट पकवान बना कर कृष्ण जी के मंदिर मे जाते थे अपने कान्हा जी को भोग लगाने । घर से तो सेठ जी निकलते पर रास्तें में ही उन्हें नींद आ जाती और उनके द्वारा बनाए हुए पकवान चोरी हो जाते ।
सेठ जी बहुत दुखी होते और कान्हा जी से शिकायत करते हुये कहते —
हे_राधे हे_ मेरे कृष्ण
ऐसा क्यूँ होता हैं , मैं आपको भोग क्यों नही लगा पाता हूँ ?
कान्हा जी , सेठ जी को कहते हैं ‘_वत्स दानें _दानें पे लिखा हैं खाने वाले का नाम ‘, वो मेरे नसीब में नही हैं , इसलिए मुझ तक नही पहुंचता ।
सेठ थोड़ा गुस्सें से कहते हैं ऐसा नही हैं , प्रभु । कल मैं आपको भोग लगाकर ही रहूंगा आप देख लेना , और सेठ चला जाता हैं । कान्हा जी मुस्कुराते हैं और कहते हैं , ठीक है ।
दूसरे दिन सेठ सुबह_सुबह जल्दी नहा धोकर तैयार हो जाता हैं और अपनी पत्नी से चार डब्बें भर बढिया बढिया स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं और उसे लेकर मंदिर के लिए निकल पड़ता हैं ।
सेठ डिब्बे पकड़ कर चलता है , रास्तें भर सोचता हैं , आज जो भी हो जाए सोऊगा नही कान्हा को भोग लगाकर रहूंगा ।
मंदिर के रास्तें में ही उसे एक भूखा बच्चा दिखाई देता है और वो सेठ के पास आकर हाथ फैलातें हुये कुछ देने की गुहार लगाता हैं ।
सेठ उसे ऊपर से नीचे तक देखता हैं । एक 5_6 साल का बच्चा हड्डियों का ढाँचा उसे उस पर तरस आ जाता हैं और वो एक लड्डू निकाल के उस बच्चें को दे देता हैं ।
जैसे ही वह उस बच्चें को लड्डू देता हैं , बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती हैं ना जाने कितने दिनो के खाए पीए नही , सेठ को उन पर करूणा आ जाती है ।
सेठ जी सब को पकवान बाँटने लगते हैं , देखते ही देखते वो सारे पकवान बाँट देते हैं । फिर उसे याद आता हैं , आज तो मैंने राधें जी कान्हा जी को भोग लगाने का वादा किया था ।
सेठ सोचते हैं कि मंदिर पहुंचने से पहले ही मैंने भोग खत्म कर दिया , अधूरा सा मन लेकर वह मंदिर पहुँच जाते हैं , और कान्हा की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े बैठ जाते हैं ।
“कान्हा प्रकट होते हैं और सेठ को चिढ़ाते हुये कहते हैं , लाओ जल्दी लाओ मेरा भोग मुझे बहुत भूख लगी हैं , मुझे पकवान खिलाओं ।
सेठ सारा कम्र कान्हा को बता देते हैं । कान्हा मुस्कुराते हुए कहते हैं , मैंने तुमसे कहा था ना ,’ दानें_दानें पर लिखा हैं खानें वाले का नाम ‘, जिसका नाम था उसने खा लिया तुम क्यू व्यर्थ चिंता करते हो ।
सेठ कहता हैं , प्रभु मैंने बड़े अंहकार से कहा था , आज आपको भोग लगाऊंगा पर मुझे उन बच्चों की करूणा देखी नही गयी, और मैं सब भूल गया ।
कान्हा फिर मुस्कुराते और कहते हैं , ‘चलो आओ मेरे साथ , और सेठ को उन बच्चों के पास ले जाते हैं जहाँ सेठ ने उन्हें खाना खिलाया था और सेठ से कहते हैं जरा देखो , कुछ नजर आ रहा हैं ‘।
“सेठ” की ऑखों से ऑसूओं का सैलाब बहने लगता हैं , स्वंय बाँके_बिहारी लाल, उन भूखे बच्चों के बीच में खाना के लिए लड़ते नजर आते हैं ।
कान्हा जी कहते हैं ‘वही वो पहला बच्चा हैं जिसकी तुमने भूख मिटाई , मैं हर जीव में हूँ , अलग_अलग भेष में , अलग_अलग कलाकारी में , अगर तुम्हें लगें मैं ये काम इसके लिए कर रहा था , पर वो दूसरे के लिए हो जाए , तो उसे मेरी ही इच्छा समझना , क्यूकि मैं तो हरकहीं हूँ ‘।
बस दानें नसीब की जगह से खाता हूँ , जिस_जिस जगह नसीब का दाना हो वहाँ पहुँच जाता हूँ । फिर इसको तुम क्या कोई भी नही रोक सकता । क्यूकि नसीब का दाना , नसीब वाले तक कैसे भी पहुँच जाता हैं , चाहें तुम उसे देना चाहों या ना देना चाहों अगर उसके नसीब का हैं , तो उसे प्राप्त जरूर होगा ।
👣“सेठ” कान्हा के चरणों में गिर जाते हैं ,
और कहते हैं “आपकी माया , आप ही जानें , प्रभु मुस्कुराते हैं ‘ और कहते हैं ‘कल मेरा भोग मुझे ही देना दूसरों को नही ‘, प्रभु और भक्त हंसने लगते हैं !!
🙏आप लोगो के भी साथ ऐसा कई बार हुआ होगा मित्रों , किसी और का खाना , या कोई और चीज किसी और को मिल गयी , पर आप कभी इस पर गुस्सा ना करें , ये सब प्रभु की माया हैं , उसकी हर इच्छा में उनका धन्यवाद करें “…
🌹मुरली वाले की जय हों🌹