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तू ‘ ‘चाहे कितना भी ज्ञानी हो ‘

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‘तू ‘ ‘चाहे कितना भी ज्ञानी हो ‘ , ‘कभी मूर्ख से’ , ‘घमंडी से’ ,’ संत से ‘ , ‘अपने सर्व-प्रिय जनों ‘ से ‘ वाद-विवाद’ ‘ मत करना’ , क्योंकि ‘ इस विवाद’ का ‘ अन्त ‘ ‘अप्रिय ‘ ही होता है |

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