सृष्टि की सबसे अनमोल आधार स्तंभ रचना नारी है । जब हम उसे अबला समझ कर सामाजिक और मानवीय अधिकारों से वंचित करते हैं , तो उसके पहले हमें सोचना चाहिए कि पुरुष तो पिता रूप है , हमारी पैदाइश का समय मात्र के लिए कारण रहा है । लेकिन वह माँ ही थी , जिसने हर कष्ट सहते हुए हमें 9 महीने अपनी कोख में रखा . अपना खून पिला कर हमें जीवन दान दिया और असह्य प्रसव पीड़ा सहन करने के बाद हमें इस संसार में लायी और उसके बाद भी अपने लहू से सृजित दूध का स्तन पान करा हमें बड़ा ही नहीं किया बल्कि उसके बाद हमारा लालन पालन भी किया और आज जो भी हम हैं , उसके लिए उसके इन उपकारों की महती श्रृंखला के हम सदा ऋणी रहेंगे ।
आज उस परम श्रद्धेय सबला को हमने अबला ही नहीं बना दिया है बल्कि हममे से अधिकांश ने उसे अपनी दासी , पैरों की जूती और भोग मनोरंजन का साधन समझा हैं । आज इसी संदर्भ में , मैं तीन तलाक के बारे में जहां तक मेरी जानकारी है अपने विचारों को आपके सामने रखूँगा । अगर जाने – अनजाने किसी की धार्मिक भावनाए आहत होती है तो विचारों के उस अंश को मैं वापस ही नहीं लेता हूं बल्कि हाथ जोड़ कर क्षमा भी मांगता हूँ ।
पाक कुरान शरीफ के रचीयता अल्ला-ताला , उसमे लिखा हुआ एक-एक शब्द हमारे लिए खुदाई आदेश है । लेकिन सवाल इस बात का है कि कुछ लोग जो अल्ला वाले नहीं मुल्ला वाले हैं । इसका गलत इंटरप्रिटेशन कर हमें गुमराह कर रहे हैं । शरीयत के मुताबिक तलाक के तीन चरण है ।
तलाख का पहला चरण उस दिन से शुरू होता है , जिस दिन हम अपनी पत्नी को किन्ही कारणों से आहत होकर यह कहते हैं कि , मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूँ , और इसी का फर्स्ट फेस उस समय समाप्त होता है , जब बेहौता अपने मासिक धर्म से पूरी तरह फारिग हो जाती है । और इसी का दूसरा फेस दूसरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के साथ समाप्त हो जाता है ।
अब इसी का तीसरा फेस । तीसरे मेंस्ट्रूअल पीरियड के समाप्त होने के पहले , अगर रजामंदी हो तो दोनों मियां-बीवी की तरह बिना निकाह और मेहर के रह सकते हैं । लेकिन तीसरे मेंस्ट्रल फेस समाप्त होने के बाद , अब अगर दोनों मियां बीवी की तरह रहना चाहते हैं , तो फिर से निकाह फिक्स होगा और मेहर भी फिक्स होगा । लेकिन अब भी बीवी शौहर की मर्जी के खिलाफ है , तो दूसरा तलाक दिया जा सकता है । यह तलाक भी उपरोक्त शर्तों के साथ तीन मेंस्ट्रुअल फेसेस तक लागू रहेगा । इसके बाद तीसरा तलाक फाइनल होगा और बीवी को अगर उसके बच्चे हैं , तो उन्हें शौहर के यहां छोड़ कर मेहर की रकम लेने के बाद , यह रिश्ता स्थाई तौर पर टूट जाएगा ।
अब तलाक शुदा औरत तलाक होने के बाद , 30 दिन के बाद अपनी मर्जी से दूसरी शादी कर सकती है । लेकिन अगर उसे यह शक होता है कि वह गर्भवती है , तो 9 महीने तक इंतजार करना होगा और वह औरत किसी दूसरे मर्द के साथ दूसरा निकाह बदस्तूर अपनी मर्ज़ी से कर सकती है । उस पर यह कोई बॉन्डिंग नहीं है कि दूसरा विवाह वह अपने शौहर से ही करेगी । हां अगर वह अपने शौहर से फिर से विवाह करना चाहती है , और उसके पहले उसने जिस आदमी से शादी की है । उससे उसे तलाक लेना पड़ेगा और अगर वह शौहर तलाक नहीं देना चाहता है । तो मामला काज़ी के सामने पेश होगा । फिर तलाक के बाद वह अपने पहले शौहर के साथ बदस्तूर निकाह कर सकती है । अगर उसके बच्चे हैं तो उनकी परवरिश उसके पहले शौहर को ही करनी पड़ेगी जिससे वे बच्चे पैदा हुए हैं । इन बच्चों का भी उसके शौहर की जमीन जायदाद पर वारिसाना हक होगा । वह अपने बच्चों से मिल सकती है और बालिग होने के बाद बच्चे चाहे तो उसे अपने साथ भी रख सक ते हैं ।
कुरान पाक की शरीयत जो तलाक के बारे में है , वह बिल्कुल जायज है ।
सवाल वहां पर उठता है कि जब शौहर शरीयत के बताए नियमों के अनुसार तीन बार तलाक न देकर एक बार में ही, तलाक- तलाक-तलाक कह कर तलाक दे देता है । जो अल्ला हुजूर का निजाम नहीं है , बल्कि मुल्लाओ की साजिश है । यहां मैं एक बार अपनी तरफ से बोलना चाहूंगा , कि अगर शौहर या उसके खानदान वाले उसकी पत्नी पर दहेज के लिए , बार-बार लड़की पैदा करने के लिए या नाजायज ढंग से उसके साथ मारपीट या बदसलूकी करते हैं , तो उसपर भी औरत को हक होगा कि आईपीसी 498(A) dowry act के सिवा जैसे हालात हो निम्नलिखित आईपीसी की धाराओं में भी वह मुकदमा अपने शौहर या अपने ससुराल वालों पर दायर कर सकती है जैसे 323 , 504 और 506 आदि-आदि ।
यह मेरी जानकारी के अनुसार है । क्योंकि औरत हिंदू , मुस्लिम , सिख , इसाई और कुछ बाद में है पर उसके भी वही हक होने चाहिए जो आम नागरिक के धर्म संगत है ।