[1]
जरा सोचो
जरा से सरसराहट पर निगाह, चौखट पर नज़र ,
ऊपर से कहते हो मुझे किसी का इंतज़ार नहीं |
[2]
जरा सोचो
‘आस में उसकी , तनहाई भी गुनगुनाने लगती है ,
यादों की खुशबू बेचैन करके सही जीने नहीं देती |
[3]
जरा सोचो
मेरे ‘प्यार के दर्द ‘ की एक तो ही ‘ दवा ‘ है ,
‘मैं’ ‘तेरी दवा’ ,’तू’ ‘मेरी दवा’ , दोनों ‘खफा’ ,
दोनों के ‘ सलीके ‘ ‘सुधारने ‘ की जरूरत है ,
‘बेइन्तहा- नफरत’ किसी के ‘घर’ बसने नहीं देती |
[4]
जरा सोचो
तुमसे मिल कर ‘ महकने’ लगा , ‘माँजरा’ क्या है ?
मेरी ‘दुआओं ‘ का ‘असर’ होने लगा है आजकल |
[5]
जरा सोचो
चाह कर भी नहीं ‘ भूल ‘ पाएंगे तेरे ‘ किरदार ‘ को ,
‘आ जाओ’ ‘ दिल का मौषम’ बड़ा ‘सुहाना’ लगता है |
[6]
जरा सोचो
हम उन्हें ‘अपना’ समझते रहे , वो ‘ नफरत ‘ करते रहे ,
इस ‘ईहापोह’ से बहतर था, ‘अनजान’ बन कर ‘जी’ जाना |
[7]
जरा सोचो
न कभी ‘ झुकना ‘ सीखा , न किसी की ‘ हाँ में हाँ ‘ मिलाई ,
जब से तेरी ‘रज़ा’ में ‘राजी’ रहने लगा, ‘आनंद’ से भरपूर हूँ |
[8]
जरा सोचो
‘योग्यता’ अर्जित करो, ‘नम्रता’ को ओढ़ो, ‘ज्ञान का भंडार’ बनो ,
‘अज्ञान’ हो कर ‘मत जीना’, ‘इन्सान की औलाद’ हो ,’इंसान’ बनो |
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जरा सोचो
रोज़ ‘ बिखर-बिखर ‘ जाता है , ‘ निखारने ‘ का प्रयास ही नहीं ,
अपने ‘रूप’ का क्या निचोड़ेगा,’धनुर्धर’ बनने की कोशिश तो कर |
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जरा सोचो
अपनों से ‘ दूर ‘ रह कर ‘नए सपने’ रोज़ ‘संजाते’ हो ,
बड़ा कठिन कार्य’ पकड़ लिया , ‘ खुदा’ खैर करे |