[1]
‘डाली’ पर बैठी चिड़ियों को, ‘उसके टूटने का डर नहीं,
‘उसे उस ‘डाल’ से ज्यादा अपने ‘पंखों’ पर भरोसा है’ !
[2]
‘कठिन समय’ में जिंदगी, ‘सभी को ‘नाच’ नचाती है,
‘अफसोस’ तब होता है जब, ‘नचाने वाले’ अपने ही हों ‘ !
[3]
‘झूठ’ बोल कर ‘वाहवाही’ लूटने से बेहतर है ,
‘सच’ उगल देना,
‘नकली मुखौटा’ ओढ़ने से बेहतर है,
‘सामान्य जीवन ‘ जी ‘ जाना !
[4]
करोना संक्रमण
‘असंभव लगती ‘समस्या’ भी हल हो जाएगी,
‘देश में कुछ ‘सख्त फैसलों’ की जरूरत है उसके लिए’ !
[5]
संक्रमण का मौषम
‘हमने नफरत की गांठे बांध रखी है,
‘सुमधुर जीवन क्यों नहीं जीते ? ,
‘ देखते-देखते सांसें उखड़ जाएगी,
‘सिर्फ प्यार के धागों से जुड़ !
[6]
‘मेरी ‘हंसी’ कौन चुराएगा ?
‘मैं ‘ मुस्कुराहट का खजाना हूं,
‘खुशियों का दीपक’ जलाएं रखता हूं,
‘तूफान’ को बढ़ने नहीं देता’ !
‘मैं ‘ मुस्कुराहट का खजाना हूं,
‘खुशियों का दीपक’ जलाएं रखता हूं,
‘तूफान’ को बढ़ने नहीं देता’ !
[7]
‘किसी की तारीफ’ करने का जलवा दिखा,
‘ तो जानेंगे तुम्हें,
‘किसी की ‘जड़ें ‘ जब चाहे खोद दो,
‘ यह हुनरबाजी नहीं होती’ !
‘ तो जानेंगे तुम्हें,
‘किसी की ‘जड़ें ‘ जब चाहे खोद दो,
‘ यह हुनरबाजी नहीं होती’ !
[8]
‘ चुप रहना तो सीख गए परंतु , ‘ सही को सही ‘ नहीं कहा,
‘कड़वे सच’ दबाते हुए, ‘समयानुसार ‘ढल जाते’ तो अच्छा था’ !
‘कड़वे सच’ दबाते हुए, ‘समयानुसार ‘ढल जाते’ तो अच्छा था’ !
[9]
‘ इधर-उधर झाँकते हो , ‘ करते कुछ भी नहीं , कौन पालेगा तुम्हें ?
‘विश्वास का दीपक जलाओगे तो,’अंधकार’ का अंत निश्चित समझ’ !
‘विश्वास का दीपक जलाओगे तो,’अंधकार’ का अंत निश्चित समझ’ !
[10]
‘कौन कहता है मुसीबत आते ही ‘आंखें’ बंद कर लो , ‘ टल जाएंगी,
‘मुसीबत’ आए बिना तो ‘आंखें’ नहीं खुलती ,’ गफलत में हो जनाब’ !
‘मुसीबत’ आए बिना तो ‘आंखें’ नहीं खुलती ,’ गफलत में हो जनाब’ !