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ज्ञान और भक्ति के मिलन का नाम अयोध्या है !

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*दशरथ पुत्र जन्म सुनि काना मानहुँ ब्रम्हानंद समाना*—दशरथजी  के  जीवन-कानन/उद्यान  में  राम  रूपी  सुमन  खिलते  ही         उनको  ब्रम्हानंद  की  अनुभूति  होने  लगी,  अत: –परमानन्द   पूरि              मन   राजा  कहा  बोलाइ  बजावहु  बाजा—मन  आनन्द  से  परिपूर्ण                हो   गया ,  राजाज्ञानुसार  भवन  में  आन्नदोत्त्स्व  मनाया  जाने  लगा

l परन्तु श्रीराम के विवाहोपरांत—*जब  तें  रामु  ब्याहि  घर  आए  नित           नव   मंगल  मोद  बधाए  जब*— अयोध्या  के  कोने-कोने  में  आनन्द

और  मंगलता  का  वातावरण  निर्मित  हो  गया  l  नित्य  नये-नये उत्सव मनाया  जाने  लगे , क्यों ?

साहब बिना शक्ति के शक्तिमान कैसा? सीताजी (शक्ति)

के साथ विवाह होने के पश्चात ही तो श्रीराम शक्तिमान हुए l दूसरे

श्रीराम ज्ञान स्वरूप हैं और ज्ञानी की शोभा भी भक्ति से ही है l

अयोध्या पूर्व में केवल ज्ञान-नगरी थी, किन्तु सीताजी के चरण

पड़ते ही भक्ति की नगरी भी बन गई l

*कहि न जाइ कछु नगर विभूती*–

-और जहाँ ज्ञान और भक्ति दोनों विराजमान हों, भला वहाँ का

सुख-एश्वर्य तो दिव्यालौकिक होगा ही न, इसमें संशय कैसा?

अत: ऐसा अनुभव होने लगा मानो रिद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति

रूपी  सुहावनी  और  मंगलकारिणी  सरिताएँ  उमड़-उमड़कर

अयोध्या  रूपी समुद्र  में  आ  मिली  हों  l  अयोध्यावासी  अच्छी

जाती   मणियों  के  समूह  सम  दिखाई  देने  लगे  l 

अब  साहब  !चिन्तन  कीजिये ,  जिन  सौभाग्यशाली  

मनुष्यों  का  हृदय- प्रदेश  ही  अयोध्या  सम  है , जिनके  हृदय-सिंघासन         पर  राघवेन्द्र  सरकार  सपत्नीक  (सीताजी)  विराजमान  हों ,  उनका  तो      कहना  ही  क्या  है ?  उनके  सुख-एश्वर्य , शान्ति  का  वर्णन  भला  कौन        कर  सकता  है ?
जय सियाराम

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