‘कर्मों की आवाज़ ‘ ‘पत्थरों में सुराख ‘ करने की ‘कुव्वत रखती है’ ,
‘न आलोचना कर’ ,’ न दे नसीहत किसी को’ , ‘न कर्म फल पर जा ‘,
‘चुप रह कर अपनी आलोचना सुन’ ,’ सुधरने का प्रयास जारी रख ‘,
‘वो’ ‘बड़ा कृपा – निधान है ‘ , ‘इंसानियत ‘ की ‘सुगंध से भर देगा तुझे ‘ |