
‘जैसे गंगा’ के ‘निर्मल नीर’ मे ‘डुबकी लगते ही’ ‘मन पवित्र’ हो जाता है ,
‘भक्ति भाव ‘ मे ‘ डूबते ‘ ही ‘मानव’, ‘परमात्मा ‘ की ‘अनुभूति ‘ करता है ,
‘फिर भी’, ‘तू’ -‘मायावी दुनिया’ मे ‘दिन-रात’ ‘कुलाचे’ मार रहा है ,
‘तूने’ ‘ क्या कभी सोचा है ‘–‘क्या पाया’ और ‘ क्या खो दिया’ ‘ तूने’ ?