Home Uncategorized “जैसा खाओगे अन्न वैसा ही बन जाएगा मन ” एक बोध कथा !

“जैसा खाओगे अन्न वैसा ही बन जाएगा मन ” एक बोध कथा !

0 second read
0
0
3,010

💐💐पाप💐💐

एक  बार  एक  ऋषि  ने  सोचा  कि  लोग  गंगा  में  पाप  धोने  जाते  हैं ,
तो  इसका  मतलब  हुआ  कि  सारे   पाप  गंगा  में   समा  गए   और  गंगा  भी  पापी   हो   गयी  .
अब  यह  जानने  के  लिए  तपस्या  की ,  कि   पाप   कहाँ   जाता   है   ?
तपस्या   करने   के   फलस्वरूप   देवता   प्रकट   हुए   ,
ऋषि   ने   पूछा   कि    भगवन   जो   पाप   गंगा   में   धोया   जाता   है   वह   पाप   कहाँ   जाता   है   ?
भगवन   ने   कहा   कि   चलो   गंगा   से   ही   पूछते   हैं   ,
दोनों   लोग   गंगा   के   पास   गए   और   कहा   कि   ,   हे   गंगे   !   सब   लोग   तुम्हारे   यहाँ   पाप   धोते   है   तो   इसका   मतलब        आप   भी   पापी   हुई   .
गंगा   ने   कहा   मैं   क्यों   पापी   हुई   ,   मैं   तो   सारे   पापों   को   ले   जा  कर   समुद्र   को   अर्पित   कर   देती   हूँ   ,
अब   वे   लोग   समुद्र   के   पास   गए   ,
हे   सागर   ! गंगा   जो   पाप   आपको   अर्पित   कर   देती   है   तो   इसका   मतलब   आप   भी   पापी   हुए   ?
समुद्र   ने   कहा   मैं   क्यों   पापी   हुआ   ,   मैं   तो   सारे   पापों   को   ले  कर   भाप   बना   कर   बादल   बना   देता   हूँ   ,
अब   वे   लोग   बादल   के   पास   गए  ,
हे   बादल  !  समुद्र   जो   पापों   को   भाप   बना  कर   बादल   बना   देते   है   ,  तो   इसका   मतलब   आप   पापी   हुए   .
बादलों   ने   कहा   मैं   क्यों   पापी   हुआ   ,  मैं   तो   सारे   पापों   को   वापस   पानी   बरसा   कर   धरती   पर   भेज   देता   हूँ   ,
जिससे   अन्न   उपजता   है   ,   जिसको   मानव   खाता   है  .   उस   अन्न   में   जो   अन्न   जिस   मानसिक   स्थिति   से   उगाया         जाता   है   और   जिस   वृत्ति   से   प्राप्त   किया   जाता   है   ,  जिस   मानसिक   अवस्था   में   खाया   जाता   है  ,
उसी   अनुसार   मानव   की   मानसिकता   बनती   है   शायद   इसीलिये   कहते   हैं   ..”   जैसा   खाए   अन्न  ,   वैसा   बनता   मन  ”     अन्न   को   जिस   वृत्ति   ( कमाई )  से   प्राप्त   किया   जाता   है  और   जिस   मानसिक   अवस्था   में   खाया   जाता   है   वैसे   ही        विचार   मानव   के   बन   जाते   है  |
इसीलिये   सदैव   भोजन   शांत   अवस्था   में   पूर्ण   रूचि   के   साथ   करना   चाहिए   ,
और   कम   से   कम   अन्न   जिस   धन   से   खरीदा   जाए   वह   धन   भी   श्रम   का   होना   चाहिए  ।

Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In Uncategorized

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…