Home कविताएं ‘जीवन शैली सुधारिए और जीवन का आनंद लीजिये ‘ !

‘जीवन शैली सुधारिए और जीवन का आनंद लीजिये ‘ !

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[1]

‘प्यार  से  पेश  आने  की  आदत  तेरी’ ,एक दिन  उसमें  भी  प्यार  भर  देगी’,
‘ वो  कयामत  की  रात  जरूर  आएगी ‘ ,’ जब  वो  अपने  अंदाज  बदल  देंगे ‘

[2]

‘ तुम  अपनी  जिंदगी  में  रो – रो  के  जिये ‘ ‘ तो  क्या  जिये  ‘,
‘जितना भी जियो ज़िंदादिली से जियो ‘,’कल किसने देखा है जनाब ‘?

[3]

सभी  माँ-बाप  -बच्चों  की  भावनाओं  का  आदर  व  उचित  व्यवहार  करते  हैं ‘,
‘ अपने  माँ – बाप  को  अनमोल  ,  अति  सम्माननीय  और  प्रिय  समझो  ‘,
‘ अनेकों   युवा –  माँ – बाप  के  प्रति  स्नेही  भावनाएं ,  बिलकुल  नहीं  रखते ‘,
‘विचार  न  भी  मिलें  तो  भी  हर  हाल  में’ ,’उनका  सम्मान  होना  ही  चाहिए ‘

[4]

‘स्त्री  कभी  लक्ष्मी  रूप  धारण  कर  परिवार  को  समपन्न  बनाती  है ‘,
‘ सरस्वती  बन  कर  संतान  को  शिक्षित   बना  पर  सम्मान  दिलाती  है ‘ ,
‘बुराई  और  पाप  नष्ट  करने   के  लिए  ‘,’  दुर्गा  रूप   भी  धारण  कर  लेती  है ‘ ,
‘नारी कल भी भारी थी,आज भी भारी’,’इंसान कल भी आभारी था आज भी आभारी’|

[5]

‘कम  बोलिए  काम  का  बोलिए’ ,’ जो  किसी  के  काम  आ  सके ‘,
‘मीठा  बोलिए  जो  आनंदित करे’ , ‘सत्यम , शिवम ,सुंदरम  हो ‘,
‘पियो  जो अमृत तुल्य  स्वाद  हो’ ,’ विषैलेपन  से  मुक्त  सदा  हो’ ,
‘कार्य  वो  करो  जो  पवित्र  हो’ , ‘सचरित्रता  का  पूरा  प्रमाण  हो ‘|

[6]

‘जब  हम  कडवा  बोल  बोलते  हैं ,’ दिल  का  दर्द  जवां  हो  जाता  है ‘,
‘जब  कह  नहीं  पाते ,सह  जाते  हैं ,समझो -‘जीना  आ  गया  हमको ‘|

[7]

‘प्रत्येक व्यक्ति  को  एक  पौधा लगा  कर बन महोत्सव मनाना चाहिए ‘,
‘देखते की देखते  करोड़ों  पौधे  हमारी  धरती पर  लहराने लग  जाएंगे ‘,
‘व्रक्ष तो जीवन है , ताज़ी हवा, फल ,अनाज, सब्जी, क्या नहीं देते हमें ‘,
‘व्रक्ष तो तेरी खुद की जरूरत है,फिर भी इस व्यवस्था से कोसों दूर क्यों’ ?

[8]

‘मानसिक  तंदुरुस्ती  एक  अद्भुत  वस्तु  है , सुख  में  व्रद्धि  कराती  है ‘,
‘जीवन भर सुख,आनंद,और आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव कराती है ,
‘दूषित भोजन, कत्रिम जीवन-शैली ,श्रम की अपेक्षा,बुढ़ापा ले आती है ‘,
‘निराशा,थकान,चिंता,भय,अनिद्रा-‘जवानी/बुढ़ापे का अंतर मिटा देती हैं’ |

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