Home ज़रा सोचो ‘जीवन की छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देने की जरूरत है’

‘जीवन की छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देने की जरूरत है’

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जरा सोचो
‘ गुजरा  जमाना ‘  याद  करके  रोज  रोते  हो ,
‘वह मिलता नहीं,’वर्तमान भी धूमिल’ समझ अपना’ !

[2]

जरा सोचो
‘अंतिम सांस’ तक ‘तलाश’ खत्म नहीं होती, ‘गजब’ इंसान है ,
‘मौत  की  आंधी ‘  किसी  दिन  ‘ उड़ा ‘  ले  जाएगी  तुझको ‘ !

[3]

जरा सोचो
‘युवा  पीढ़ी’  को  संस्कृति, संस्कार , और  ‘बड़ों  से  आजादी’  चाहिए,
‘अपनी  ‘रक्षा  कवचो’ को  हटाकर, ‘स्वस्थ  जीवन’  जी  नहीं  सकते’ !

[4]

जरा सोचो
‘ बचपन’  गया, ‘जवानी’  गई, ‘दांत’  गए, ‘सफेदी’  आ  गई,
‘ ऐ  जिंदगी -‘नित  ‘नए  चालान’  कटते  जा  रहे  हैं  आपके’ !

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जरा सोचो
‘ बेटे ‘ भाग्य ‘ लाते  हैं  तो ‘ बेटियां ‘ ‘ ‘सौभाग्य  की  जननी’,
‘हम ‘महा सौभाग्य’ वाले हैं, ‘समभाव’ से संचित करो सबको’ !

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मेरी सोच
‘अभी  मैं ‘गुमनाम’  प्राणी  हूं, इसलिए  मुझसे  ‘फेसला’ बनाए  रखते  हो,
‘क्या  जब  ‘ मशहूर ‘  हो  जाऊं  तभी , ‘ मुझको ‘गले’  लगाओगे  शायद’ !

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जरा सोचो
‘बुरे  को  अच्छा’  कैसे  करें  ? यह  ‘विश्वास’  बताता  है,
‘ विश्वास की ज्योति’ जला, ‘जगमग’ हो जाएगा सब कुछ’ !

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जरा सोचो
‘ शब्दों  में ‘ मिठास  और  जहर” दोनों  का ‘भंडार’ छिपा  है,
‘ दांत ‘ ‘ दिखाने ‘  के  और , ‘ काटने ‘  के  और  मिलते  हैं’ !

[9]

जरा सोचो
‘ भगवान  के  सामने  ‘सिर’  तो  झुकाते  हो , ‘मन’  को  नहीं,
‘अटट  विश्वास’ से  हाजिरी  तो  लगा , ‘पाप’ सारे  धुल  जाएंगे:’ !

[10]

 

जरा सोचो
‘दुनियादारी’   तो   ‘मतलबी   जज्बातों’   के   सहारे   चलती   है ,

‘बेमतलब’  तो  आज  कोई ‘कटी  उंगली’  पर ‘थूकता’  भी  नहीं’ !

 

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