[1]
जरा सोचो
‘ गुजरा जमाना ‘ याद करके रोज रोते हो ,
‘वह मिलता नहीं,’वर्तमान भी धूमिल’ समझ अपना’ !
[2]
जरा सोचो
‘अंतिम सांस’ तक ‘तलाश’ खत्म नहीं होती, ‘गजब’ इंसान है ,
‘मौत की आंधी ‘ किसी दिन ‘ उड़ा ‘ ले जाएगी तुझको ‘ !
[3]
जरा सोचो
‘युवा पीढ़ी’ को संस्कृति, संस्कार , और ‘बड़ों से आजादी’ चाहिए,
‘अपनी ‘रक्षा कवचो’ को हटाकर, ‘स्वस्थ जीवन’ जी नहीं सकते’ !
[4]
जरा सोचो
‘ बचपन’ गया, ‘जवानी’ गई, ‘दांत’ गए, ‘सफेदी’ आ गई,
‘ ऐ जिंदगी -‘नित ‘नए चालान’ कटते जा रहे हैं आपके’ !
[5]
जरा सोचो
‘ बेटे ‘ भाग्य ‘ लाते हैं तो ‘ बेटियां ‘ ‘ ‘सौभाग्य की जननी’,
‘हम ‘महा सौभाग्य’ वाले हैं, ‘समभाव’ से संचित करो सबको’ !
[6]
मेरी सोच
‘अभी मैं ‘गुमनाम’ प्राणी हूं, इसलिए मुझसे ‘फेसला’ बनाए रखते हो,
‘क्या जब ‘ मशहूर ‘ हो जाऊं तभी , ‘ मुझको ‘गले’ लगाओगे शायद’ !
[7]
जरा सोचो
‘बुरे को अच्छा’ कैसे करें ? यह ‘विश्वास’ बताता है,
‘ विश्वास की ज्योति’ जला, ‘जगमग’ हो जाएगा सब कुछ’ !
[8]
जरा सोचो
‘ शब्दों में ‘ मिठास और जहर” दोनों का ‘भंडार’ छिपा है,
‘ दांत ‘ ‘ दिखाने ‘ के और , ‘ काटने ‘ के और मिलते हैं’ !
[9]
जरा सोचो
‘ भगवान के सामने ‘सिर’ तो झुकाते हो , ‘मन’ को नहीं,
‘अटट विश्वास’ से हाजिरी तो लगा , ‘पाप’ सारे धुल जाएंगे:’ !
[10]
जरा सोचो
‘दुनियादारी’ तो ‘मतलबी जज्बातों’ के सहारे चलती है ,
‘बेमतलब’ तो आज कोई ‘कटी उंगली’ पर ‘थूकता’ भी नहीं’ !