Home ज़रा सोचो ‘जीभ बड़ी चंचल होती है’ , ‘सदा अच्छा –बुरा’ ‘ सबकुछ उगलती है’ ,

‘जीभ बड़ी चंचल होती है’ , ‘सदा अच्छा –बुरा’ ‘ सबकुछ उगलती है’ ,

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‘जीभ बड़ी चंचल होती है’ , ‘सदा अच्छा –बुरा’ ‘ सबकुछ उगलती है’ ,
‘उन्नति या अवनति के राज सदा’ ‘ जीभ में ही छिपे मिलते हैं ‘,
‘घर का भेदी लंका ढाये’ , ‘जीभ तुम्हारी है’ , ‘संभाल कर चलाओ’ ,
‘तुम भी समाज के ही अंश हो’ , ‘यहीं पर रहना है ‘, ‘सोचो ज़रा’ |

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