*”जीने की कला”* 🔵
एक शाम माँ ने दिन भर की लम्बी थकान एवं काम के बाद जब डिनर बनाया तो उन्होंने पापा के सामने एक प्लेट सब्जी और एक जली हुई रोटी परोसी । मुझे लग रहा था कि इस जली हुई रोटी पर कोई कुछ कहेगा ।
परन्तु पापा ने उस रोटी को आराम से खा लिया । मैंने माँ को पापा से उस जली रोटी के लिए “साॅरी” बोलते हुए जरूर सुना था । और मैं ये कभी नहीं भूल सकता जो पापा ने कहा “प्रिये , मूझे जली हुई कड़क रोटी बेहद पसंद है ।”
देर रात को मैंने पापा से पूछा , क्या उन्हें सचमुच जली रोटी पसंद है ?
उन्होंने मुझे अपनी बाहों में लेते हुए कहा – तुम्हारी माँ ने आज दिन भर ढ़ेर सारा काम किया , और वो सचमुच बहुत थकी हुई थी और… वेसे भी…एक जली रोटी किसी को ठेस नहीं पहुंचाती , परन्तु कठोर-कटू शब्द जरूर पहुंचाते हैं ।
तुम्हें पता है बेटा – जिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से…अपूर्ण लोगों से… कमियों से…दोषों से… मैं स्वयं सर्वश्रेष्ठ नहीं ,साधारण हूँ और शायद ही किसी काम में ठीक हूँ ।
मैंने इतने सालों में सीखा है कि-
“एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करो…अनदेखी करो… और चुनो… पसंद करो…आपसी संबंधों को सेलिब्रेट करना ।”
मित्रों ,
जिदंगी बहुत छोटी है…उसे हर सुबह दु:ख…पछतावे…खेद के साथ जताते हुए बर्बाद न करें ।
जो लोग तुमसे अच्छा व्यवहार करते हैं , उन्हें प्यार करो ओर जो नहीं करते उनके लिए दया सहानुभूति रखो ।
किसी ने क्या खूब कहा है-
- *”मेरे पास वक्त नहीं उन लोगों से नफरत करने का जो मुझे पसंद नहीं करते *,
- क्योंकि मैं व्यस्त हूँ उन लोगों को प्यार करने में जो मुझे पसंद करते हैं।*
ऊँ नमःशिवाय🌅🙏🏻