[1]
जरा सोचो
अपनी ‘कमजोरियों’ को बताना ‘कठिन’, दूसरों का ‘ चिंतन ‘ सरल,
‘खुद’ पर ‘ध्यान’ केंद्रित तो, ‘कमजोरियां’ कम,’परिवर्तन’ भी आएगा’ !
[2]
जरा सोचो
‘तन की भागदौड़’ और ‘मन की स्थिरता’,’स्वस्थता’ के परिचायक हैं,
‘विचलित मन’ पूरा हिलाए रखता है , सब ‘काम’ अधूरे रहते हैं’ !
[3]
“अमावस ” की रात ” दीपावली ” मनाते हैं , प्रकाश बिखेरते हैं ,
इस काली रात में कुछ ऐसे “तिनके” भी हैं ,जिन्हे हमारी ज़रूरत है ,
उन ” वीरानों ” में भी ” रोशनी” पहुचें ,जहां खुद “रोशनी” जाने से डरती हो ,
“सार्थक प्रयास ” तो करो , “सन्नाटा ” भी तुम्हारे प्यार से जगमगा उठेगा |
[4]
जरा सोचो
‘स्नेही’ निगाहों में ‘इश्क की गहराई’ का ‘एहसास’ होता है,
चाहे ‘विश्वामित्र’ बन जाओ , हर सूरत ‘फिसल ‘ जाओगे’ !
‘स्नेही’ निगाहों में ‘इश्क की गहराई’ का ‘एहसास’ होता है,
चाहे ‘विश्वामित्र’ बन जाओ , हर सूरत ‘फिसल ‘ जाओगे’ !
[5]
जरा सोचो
‘ दहकता’ यौवन, मंद मुस्कान, ‘नैनों’ में अचूक गहराई,
‘गजब’ ढाती है,’ हर धड़कन’ पूरे ‘शबाब’ पर समझो’ !
‘ दहकता’ यौवन, मंद मुस्कान, ‘नैनों’ में अचूक गहराई,
‘गजब’ ढाती है,’ हर धड़कन’ पूरे ‘शबाब’ पर समझो’ !
[6]
जरा सोचो
‘ हमाम’ में हम सभी ‘ नंगे ‘ ही नजर आते हैं आजकल,
‘छोटे बड़े’ का ‘लिहाज’,’खूंटी पर टंगा’ नजर आता है जनाब’ !
‘ हमाम’ में हम सभी ‘ नंगे ‘ ही नजर आते हैं आजकल,
‘छोटे बड़े’ का ‘लिहाज’,’खूंटी पर टंगा’ नजर आता है जनाब’ !
[7]
जरा सोचो
‘ जिस्मानी’ मोहब्बत ‘बयां’ होती है, ‘अंतरिक एहसास’ नहीं,
‘दिल की गहराई’ नापते- नापते ,’ उम्र ‘ कट जाएगी यारों’ !
‘ जिस्मानी’ मोहब्बत ‘बयां’ होती है, ‘अंतरिक एहसास’ नहीं,
‘दिल की गहराई’ नापते- नापते ,’ उम्र ‘ कट जाएगी यारों’ !
[8]
जरा सोचो
हम ‘इकट्ठे’ रह कर ‘जीने’ के आदी हैं,
,’नई पीढ़ी’ सिर्फ ‘इकट्ठा’ करने में ‘तल्लीन’ है,
सब जानते हैं ‘अंत’ में सब ‘यहीं’ रह जाएगा ,
फिर भी ‘ तसल्ली ‘ नाम की चीज नहीं है !
[9]
मेरा विचार
” दिवाली” हमारे देश की ‘संस्कृति’ और ‘परंपराओं’ की विरासत है !
” दिवाली” हमारे देश की ‘संस्कृति’ और ‘परंपराओं’ की विरासत है !
‘दिवाली’ ‘उदास’ लोगों की नहीं, ‘उल्लास’ और ‘मिलन’ का नाम है’ !
[10]
कुछ ‘खुशियां’ समेट ली, कुछ ‘गम’ भुला दिए,
दिल से ‘नफरत’ भुला दी, ‘दिवाली’ हो गई अपनी’ !
दिल से ‘नफरत’ भुला दी, ‘दिवाली’ हो गई अपनी’ !