[1]
जरा सोचो
‘भाग्य’ नहीं सही ‘उद्देश्य’ की अग्रसरता ‘कामयाबी’ दिलाती है !
‘अच्छी आदतें’ और ‘ईमानदार कोशिश’ ‘प्रतिभा’ को उभार देती हैं !
[2]
जरा सोचो
‘बुद्धिमान प्राणी’ छोटी सी ‘मदद का आभार’ प्रकट करने में ‘कंजूसी’ नहीं करते,
वो ‘ घृणा , गुस्सा , और घबराहट ‘ को ‘ सकारात्मक ऊर्जा ‘ में बदल देते हैं !
[3]
जरा सोचो
‘ भगवान ‘ खुशी का ‘ एक द्वार ‘ बंद करता है तो ‘ दूसरा ‘ खोल देता है,
हम अक्सर ‘बंद दरवाजा’ टकटकाते हैं, ‘खुले की ओर’ झांकते तक नहीं !
[4]
जरा सोचो
लोग ‘ मीठा ‘ खूब खाते हैं फिर भी ‘ जबान ‘ कितनी ‘ कड़वी ‘,
‘मधुरता’ का अंत नहीं है फिर भी, ‘कोयल’ सरीखे ‘मीठे’ नहीं मिलते !
[5]
जरा सोचो
सहिष्णुता का अभ्यास , उत्तरदायित्व की समझ , वाणी पर नियंत्रण , अपने दोषों का अन्वेषण, नम्रता, साधुता, सरलता, आपको श्रेष्ठ कर देंगे !
[6]
जरा सोचो
इंसान ‘बेरुखी के पैबंद’ लगाकर घूमता है आजकल फिर भी,
‘ चांदनी के चांद ‘ को चपेटने का ‘ चस्का ‘ कम नहीं होता !
[7]
जरा सोचो
‘जिंदगी’ दांव पर लगा कर, ‘नशे की लाइन’ में खड़ा हो गया,
अब ‘नशा’- ‘जिंदगी’ से बड़ा हो गया, देश के ‘हालात’ बदतर हैं !
[8]
जरा सोचो
‘कृष्ण’ की शादी ‘रुकमणी’ से हुई, उनकी ‘चाहत’ ‘राधा’ ही थी,
‘विधाता का विधान’ अटल निकला , ‘ सत्य ‘ को स्वीकारिये !
[9]
जरा सोचो
‘खलनायक’ सदा ‘शराफत का तमगा’ लगाकर ‘मैदान’ में उतरते हैं,
उनका ‘ उल्लू ‘ जिस करवट बैठता है , उधर ही ‘ घूम ‘ जाते हैं !
[10]
जरा सोचो
हमारा ‘मन’ और ‘तन’ व्यवहारिक ओर सुविचारक है, खुद को सुसंस्कृत समझो,
हर ‘ समस्या ‘ ‘ बोनी ‘ पड जाएगी , समाज के ‘ लाडले ‘ बन जाओगे !