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“जिंदगी को ऐसे भी निहारें ‘-‘ कुछ छंद “

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[1]

‘हर  कोई  अपनी  जिंदगी  में ‘ ,’एक  गुस्ताखी  जरूर  करता  है ‘,
‘ खुद  कंधों  पर  चढ़ता  है ‘,’ अपनों  को  पैदल  ही  चलाता  है ‘,
‘उस  मस्ती  का  खुद आनंद लेता  है’,’कोई चिंता  नहीं सताती ‘,
‘दुनियाँ की  हर व्यवस्था छोड़’,’परलोक का दामन  पकड़ता  है ‘|

[2]

‘वर्तमान  का  सुख  भोगो,’भविष्य  की  कोई  गारंटी  नहीं ;
‘आश्वासनों  पर  कब तक  जियोगे’,’प्रलोभन  मार  डालेंगे ‘|

[3]

‘लम्हे- सुंदर  भावनाओं  के  कारण’ 
‘सुन्दर  बनते  हैं ‘,
‘अवगुणों  से  बच  कर  चलें’ ,
‘सदगुणी  बन  जाओगे ‘|

[4]

‘खाली  लकीरों  पर  मत  जा’, 
‘कुछ  सुकर्म  करने  की  विधा  को  जान’,
‘नया  जमाना  है  खाली  बैठ  गए  तो’, 
‘घर  के  भी  धक्के  मार  कर  भगा  देंगे’|

[5]

‘मंजिल  खुद  चल  कर  नहीं  आती’ ,
‘संघर्ष  करके  पाई  जाती  है ‘,
‘कदम  से  कदम  मिला  कर  आगे  बढ़े’ ,
‘तो  रास्ते  खुल  जाएंगे ‘|

[6]

‘गृह-लक्ष्मी  को  परेशान  करके  कौन  सा  पहाड़  तोड़  डालोगे  जनाब’ ?
‘सहनशक्ति अगर यूं ही खतम कर ली’ ,’आदमी होते हुए भी आदमी नहीं ‘

[7]

|’शत्रु  से  स्नेह  और  अनादर  करने  वाले  को ‘आशीष  देते  रहो’,
‘घ्रणा- स्नेह में  बदल  जाएगी’, ‘तुम्हारी  बरकरार  श्रेष्ठता  रहेगी ‘|

[8]

‘गल्तियाँ दोनों ही करते हैं फिर’ 
‘तकरार किसलिए’ ? 
‘बेदाग आदमी अब कहाँ मिलते हैं’ 
‘बस ढूंढते रह जाओगे’ |

[9]

‘जिंदगी फैसला करने में देर नहीं करती’,
‘पल में हाँ ”पल में खतम ,’,
‘यादों के बंडल बन जाएंगे सभी’ ,
‘आज ही जी लो करके ढूसम-ढूसम ‘|

[10]

‘जिस घर में ‘न संतों की वाणी हो ‘
‘न माँ-बाप का सम्मान ‘,
‘वहाँ उद्धार की कल्पना सिर्फ कल्पना है’,
‘कल्याण कैसे हो ‘?

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