Home ज़रा सोचो ‘जहां ‘प्यार की धारा’ बहे ‘एक परिवार’ रहता है | जरा सोचो |

‘जहां ‘प्यार की धारा’ बहे ‘एक परिवार’ रहता है | जरा सोचो |

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[1]

मुझे  उसकी ‘ जरूरत’  है , यह  ‘अहसास’  नहीं  जागा  उसमें  ,

‘आज  नहीं  तो  कल’  जागेगा  जरुर ,इसी  ‘आशा’  में  जीते  हैं |

[2]

‘प्यार’  में  उधारी  नहीं  चलती, ‘प्यार  के  बदले   प्यार’  होना  चाहिए ,

एक  तरफ  का  ‘प्यार’  किसी  दिन , ‘ रसातल ‘  में   धंसा   देगा  तुझे  |

[3]

‘मजबूत  इरादे’ कभी  ‘ तूफानों’  से  नहीं  डरते  ,

किले  में  ‘सेंध’  लगा  कर,  ‘बाज़ी’  जीत  लेते  हैं  |

[4]

जहां  ‘स्नेह  की  धारा’  बहे , एक ‘ परिवार’  बसता   है ,

जहां  ‘द्विभाषी’  विराजे  हों , वहाँ  ‘द्वेष’  का  परिवेश  है |

[5]

‘छली’  छल  करके  ‘भूल’  जाता  है , ‘सरल  प्राणी’  को  भी  छल  जाता  है ,

‘दंभ’  ‘बर्बादी’  का  खुला  रास्ता  है , वहाँ  कभी ‘ ताला ‘  नहीं  मिलता  | 

[6]

‘सूरज’  निकलते  ही  ‘प्रकाश’, ‘गुलाब’ खिलते  ही ‘ खुशबू’ का  अहसास  होता  है ,

हम मानव  हो  कर  भी  ‘मानत्व’  नहीं रखते , ‘क्रंदन  ही  क्रन्दन’  है  चारों  तरफ  |

[7]

आप  ‘हँसता  चेहरा’ ‘चहकता  मन’ की  ‘सच्ची  संपत्ति’  के  मालिक  हैं ,

फिर ‘ डांवाडोल  जीवन’  किसलिए ? ‘मदमस्त हाथी’  की  भांति  जियो |

[8]

‘वो’ ‘दिल-दिमाग’  में   छाने  लगे , अपना  ‘कत्ल’  सा  होता  दीखा ,

गए   थे   उनको   ‘ डराने ‘ ,  ‘खुद’   के ‘ परखचे ‘  उड़ने  लगे  |

[9]

जरा  छूने  भर  से  ‘सिहरन ‘  दौड़ने  लगी , ‘दिल’  उछलने  लगा ,

पूरे  दिल  में  समा  गए  तो  क्या  होगा ? सोच  कर  डरते  हैं  हम  |

[10]

जरा सोचो
सभी  कहते  हैं  ‘मिला’  मगर  ‘बहुत  कम’  मिला,  सब  ‘अधूरा’  है,
‘जितना  मिला’ ना  जाने  कितनों  को ‘नहीं  मिला’- क्या क भी  ‘सोचा’ ?

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