[1]
जरा सोचो
‘इंसान’ सभी ‘सामान्य’ है, सिर्फ उनके ‘हुनर’ बोलते हैं,
‘ परिंदे ‘ तो सिर्फ ‘ उड़ते ‘ हैं , उनके ‘ पर ‘ बोलते हैं !
[2]
जरा सोचो
‘लक्ष्य’ पर तो चले, ‘निंदा” सुनकर पीछे हटने लगे , क्यों ?
‘कदम दर कदम’ बढ़ते रहते, सही ‘ठिकाने’ भी मिल जाते !
[3]
जरा सोचो
‘भूखे’ को ‘रोटी’ नहीं, ‘युवकों’ को ‘काम’ नहीं, ‘गरीबों’ को ‘इलाज’ नहीं,
‘ मंदिर ‘- ‘ धन ‘ से लबालब , यह ‘ भारत ‘ है, कोई ‘बूचड़खाना’ नहीं !
[4]
जरा सोचो
चलो कुछ आज ‘ अच्छा ‘ करें , कुछ ‘बुरा’ भूल जाएं,
‘मुस्कुराए’ जमाना गुजर गया, आज चलो ‘मुस्कुराएं’ !
[5]
जरा सोचो
‘जरूरत’ सबकी पूरी होती है, ‘भूखा’ कोई नहीं सोता,
‘बेहिसाब’ चाहोगे तो ‘ दर्द से रूबरू ‘ होना जरूरी है !
[6]
जरा सोचो
कितनी भी ‘ पूजा ‘ कर , चाहे कितने भी ‘ घंटे ‘ बजा,
‘इंसानियत’ का ‘दीप’ नहीं जलाया, तो ‘बेकार’ है सब कुछ !
[7]
जरा सोचो
‘एक दर्द’ बार बार मिले तो , ‘झल्लाना’ बंद करना चाहिए,
तू ही ‘झल्ला’ है ‘समझा’ नहीं, प्रभु ! ‘कुछ और’ चाहते हैं तुझसे !
[8]
जरा सोचो
‘तुम’ श्रद्धा से झुका सिर, सहयोगी हाथ, आंखों में स्नेह, और सन्मार्गी हो , तो तुम सा ‘ धनी ‘ कोई नहीं !
[9]
स्वस्थ शरीर, शुद्ध कमाई, सर्वोत्तम पठन, और आत्म चिंतन,
जो इन ‘गुणों का भंडार’ है, वह कभी ‘मौत’ से नहीं डरता !