Home ज़रा सोचो ‘जरा सोचो’- ‘सारी रात सपने देखते हैं’- दिन निकलते ही भूल जाते हैं ‘ |

‘जरा सोचो’- ‘सारी रात सपने देखते हैं’- दिन निकलते ही भूल जाते हैं ‘ |

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जरा   सोचो
‘दिल  में  ‘विश्वास  के  पौधे’  लगाइए, बस  मुस्कुराइए ,
‘नफरत’  के  अफसाने  को  केवल ‘दोजकख’ दिखाइए’ !

[2]

जरा   सोचो
‘प्रसादमय’ बने  रहने  के  अवसर  बहुत  ‘कम  नसीब’  होते  हैं,
जहां  देखो  ‘प्रलाप , विलाप , संताप  और  विषाद’  मिलते  हैं’ !

[3]

जरा   सोचो
‘बुढ़ापा’ आना स्वाभाविक प्रक्रिया है, ‘महसूस’ करोगे तो ‘बुढ़ापा’ है,

‘जिंदा दिल’ बनकर  जिए  तो,’ जिंदा दिल  इंसान’  ही  कहलाओगे’ !

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जरा   सोचो
‘किसी  के ‘चेहरे  पर  मुस्कुराहट’ लाने  की  कोशिश  तो  कर,
लोग ‘फरिश्ता’ समझेंगे  तुझे, ‘खुशियों  से  झोली’  भर  देंगे’ !

[5]

जरा   सोचो 
‘ जिससे  ‘मिलते’  ही  ‘दुख’  घटे , ‘ खुशी ‘ चौगुनी  हो  जाए,
‘ वह ‘फरिश्ते’ से  कम  नहीं, बाकी ‘दुनिया’  से  क्या  लेना’ ?

[6]

जरा   सोचो
‘ सुबह  बचपन ,  दोपहर  जवानी , रात  बुढ़ापा  है,
‘ इस ‘दहकती दुनिया’ का  बस  इतना ‘फसाना’  है’ !

[7]

जरा   सोचो
‘ सारी  रात’  सपने  देखते  हैं ,  सूरज  निकलते  ही ‘ भूल ‘  जाते  हैं,
‘ईश्वर’ मौका सभी  को जरूर  देते  हैं,’तुम ना भुनाओ  तो तुम्हारा ‘कसूर’  है ‘ !

[8]

जरा   सोचो
‘संसार  आवागमन  है ,  कुछ  पास  आएंगे  तो  कुछ  दूर  जाएंगे,
‘ जो ‘संस्कारों ‘ में  ढल  गया, सबको ‘अपना  बनाता’ चला  गया’ !

[9]

जरा   सोचो
‘जो  हकीकत  में  ‘अच्छे’  हैं,  उनकी  ‘परीक्षा’  किसलिए’ ?
‘वे शुद्ध ‘पारे’  हैं ,’फिसल  कर’ जिंदगी  से ‘निकल’ जाएंगे’ !

[10] 

जरा   सोचो
‘दुर्व्यवहारो को ‘दुआएं’  नहीं मिलती,’गलतफहमी’ का शिकार रहते  है,
‘ सुव्यवहारी ‘  दिलों  को  छूता  है , ‘ दुआएं  भरपूर  मिलती  हैं  !
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