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जरा सोचो
‘दिल में ‘विश्वास के पौधे’ लगाइए, बस मुस्कुराइए ,
‘नफरत’ के अफसाने को केवल ‘दोजकख’ दिखाइए’ !
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जरा सोचो
‘प्रसादमय’ बने रहने के अवसर बहुत ‘कम नसीब’ होते हैं,
जहां देखो ‘प्रलाप , विलाप , संताप और विषाद’ मिलते हैं’ !
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जरा सोचो
‘बुढ़ापा’ आना स्वाभाविक प्रक्रिया है, ‘महसूस’ करोगे तो ‘बुढ़ापा’ है,
‘जिंदा दिल’ बनकर जिए तो,’ जिंदा दिल इंसान’ ही कहलाओगे’ !
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जरा सोचो
‘किसी के ‘चेहरे पर मुस्कुराहट’ लाने की कोशिश तो कर,
लोग ‘फरिश्ता’ समझेंगे तुझे, ‘खुशियों से झोली’ भर देंगे’ !
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जरा सोचो
‘ जिससे ‘मिलते’ ही ‘दुख’ घटे , ‘ खुशी ‘ चौगुनी हो जाए,
‘ वह ‘फरिश्ते’ से कम नहीं, बाकी ‘दुनिया’ से क्या लेना’ ?
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जरा सोचो
‘ सुबह बचपन , दोपहर जवानी , रात बुढ़ापा है,
‘ इस ‘दहकती दुनिया’ का बस इतना ‘फसाना’ है’ !
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जरा सोचो
‘ सारी रात’ सपने देखते हैं , सूरज निकलते ही ‘ भूल ‘ जाते हैं,
‘ईश्वर’ मौका सभी को जरूर देते हैं,’तुम ना भुनाओ तो तुम्हारा ‘कसूर’ है ‘ !
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जरा सोचो
‘संसार आवागमन है , कुछ पास आएंगे तो कुछ दूर जाएंगे,
‘ जो ‘संस्कारों ‘ में ढल गया, सबको ‘अपना बनाता’ चला गया’ !
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जरा सोचो
‘जो हकीकत में ‘अच्छे’ हैं, उनकी ‘परीक्षा’ किसलिए’ ?
‘वे शुद्ध ‘पारे’ हैं ,’फिसल कर’ जिंदगी से ‘निकल’ जाएंगे’ !
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