[1]
जरा सोचो
‘ जैसा ‘ स्वभाव’ होगा निश्चित ‘ प्रभाव ‘ वैसा ही होगा सब पर,
‘शुद्धता’ का स्पर्श ‘आनंदमयी’ तो ‘अशुद्धता’ का स्पर्श ‘हृदय विदारक’ !
[2]
जरा सोचो
‘जरा सी ‘उलझने’ क्या आई, ‘गुनगुनाना’ भी भूल गए,
‘मिमियाती बिल्ली’ नजर आए, ‘गजब’ हैं आप तो’ !
[3]
जरा सोचो
‘ खिलखिलाती’ इंसानियत को छू आओ, ‘मदमस्त’ हो जाओगे,
‘क्या ‘रोए- रोए’ से रहते हो, एक बार ‘जिंदगी’ से ‘मिल’ तो लो’ ‘
[4]
जरा सोचो
‘रिश्ते’ चाहे कम हो, परंतु ‘दिल’ से निभाने चाहिए,
‘जब भी जिस ‘मोड़’ पर मिले, ‘स्नेह’ की ‘बौछार’ हो’ !
[5]
जरा सोचो
‘जीभ’ अक्सर ‘कैंची’ की तरह चलती है, ‘सुधरती’ ही नहीं,
‘उस पर ‘लगाम’ सुधार के ‘अनेकों आयाम’ स्थापित कर देगी’ !
[6]
जरा सोचो
‘व्रत करो- ‘गरीबी’ हटाने का, ‘भेद-भाव’ मिटाने का,’भ्रष्टाचार’ भगाने का,
‘पाखंड व जात पात’ से बचने का, ‘अन्याय व असमानता’ घटाने का’ !
[7]
जरा सोचो
‘निडर प्राणी’ सुनता नहीं,’कुछ न कुछ’ कर डालता है, ‘निसंकोच कर्मकार’ के रास्ते, ‘ उलझने’ रोका नहीं करते’ !
[8]
जरा सोचो
‘वो’ मुझे ‘बदनाम’ करते रहे, ‘हमारा कुछ नहीं ‘बिगड़ा’,
‘हम’ जहां पर थे वहीं पर हैं, ‘वह ‘मशहूर’ होते चले गए’ !
[9]
जरा सोचो
‘सही काम’ की ‘तारीफ’ होनी चाहिए,
‘आदमी की तारीफ’ उचित नहीं, ‘बहरुपियों’ का जमाना है,
‘प्रपंची’ जाल फेंक ही देते हैं ‘