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‘ जरा सोचो ‘ जीवन के कितने सुंदर स्वरूप हैं “

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जरा  सोचो
‘अनिद्रा ,बुरा  समाचार,’स्वास्थ्य  का  संतुलन’  बिगाड़  देते  है,
‘ ऐसे  समाज  का  ‘निर्माण’ करो ,’बिना हंसे’ रुक  नहीं  पाए  कोई’ !

[2]

जरा  सोचो
‘आनंद  रूपी  तेल’ की  रोजाना ‘मालिश’  करो, उदासीनता’  उड़  जाएगी,
‘ निर्बल  और  मलिन’  मन  को ‘प्रसन्नता  की  डोज’  पिलाते  ही  रहो’ !

[3]

जरा  सोचो
‘ संदेह  और  भय’ आपको  किसी  का ‘आत्मविश्वास’  जीतने  ही  नहीं  देते ,
‘अपने  ‘आचार- विचार’ और ‘भावों  की  समुन्नती’ का  प्रयास  जारी  रखें’ !

[4]

जरा  सोचो
‘स्त्री ‘अक्सर  अपनी ‘पीड़ा’  छुपाती  है, ‘इच्छाओं’  को  भी ‘दवाये’  रखती  है ,
‘सौम्यता’  की  तस्वीर  है  स्त्री, ‘ फिर  भी  ‘तिरस्कार’  करते  हैं  उनका’ !

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जरा  सोचो
‘बीमारी’  से  ग्रस्त  प्राणी  के  लिए  ‘स्नेह’  ही  ‘सर्वोत्तम  दवाई’  है,
‘अगर  स्नेह  ‘कारगर’  कम  हो  तो , ‘ उसकी  ‘डोज’ डबल  कर  दो’ !

[6]

जरा  सोचो
‘कर्मशील’  बने  रहना  ईश्वर  की  ‘सर्वोत्तम  प्रार्थना’  है,
‘ वैभव’ सदा ‘कर्मशील’  प्राणी  में  ही ‘छिपा’  मिलता  है’ 

[7]

जरा  सोचो
‘प्रभु’   को  दिल  से ‘याद’  कीजिए , तकरीबन  ‘औढ’  लीजिए,
‘आंतरिक  शक्ति’ बढ़ जाएगी, कुछ  ‘मांगने’  की  जरूरत  नहीं’ !

[8]

जरा  सोचो
‘घर  की  लड़की’  से  कहते  हो , ‘ इज्जत ‘  खराब  मत  करना ,
‘बेटे’ से भी कह देते, किसी की ‘इज्जत’ से ‘खिलवाड़’ मत करना’ !

[9]

जरा  सोचो
‘बिना  करे’  किसी  को  कुछ  नहीं  मिलता,
‘हाथ  की  लकीरों’ में  ‘कर्म  रंग’ भरते  रहो’ !

[10]

जरा  सोचो
‘सपने’  देखते  रहे, ‘नींद’ हराम  कर  ली, बड़े  ‘खडूस’  प्राणी  हो,
‘कुछ  करके’  भी  खा  लेते , ‘जीना’ बेमुहाल  नहीं  होता  कभी’ !

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