[1]
जरा सोचो
‘अनिद्रा ,बुरा समाचार,’स्वास्थ्य का संतुलन’ बिगाड़ देते है,
‘ ऐसे समाज का ‘निर्माण’ करो ,’बिना हंसे’ रुक नहीं पाए कोई’ !
[2]
जरा सोचो
‘आनंद रूपी तेल’ की रोजाना ‘मालिश’ करो, उदासीनता’ उड़ जाएगी,
‘ निर्बल और मलिन’ मन को ‘प्रसन्नता की डोज’ पिलाते ही रहो’ !
[3]
जरा सोचो
‘ संदेह और भय’ आपको किसी का ‘आत्मविश्वास’ जीतने ही नहीं देते ,
‘अपने ‘आचार- विचार’ और ‘भावों की समुन्नती’ का प्रयास जारी रखें’ !
[4]
जरा सोचो
‘स्त्री ‘अक्सर अपनी ‘पीड़ा’ छुपाती है, ‘इच्छाओं’ को भी ‘दवाये’ रखती है ,
‘सौम्यता’ की तस्वीर है स्त्री, ‘ फिर भी ‘तिरस्कार’ करते हैं उनका’ !
[5]
जरा सोचो
‘बीमारी’ से ग्रस्त प्राणी के लिए ‘स्नेह’ ही ‘सर्वोत्तम दवाई’ है,
‘अगर स्नेह ‘कारगर’ कम हो तो , ‘ उसकी ‘डोज’ डबल कर दो’ !
[6]
जरा सोचो
‘कर्मशील’ बने रहना ईश्वर की ‘सर्वोत्तम प्रार्थना’ है,
‘ वैभव’ सदा ‘कर्मशील’ प्राणी में ही ‘छिपा’ मिलता है’
[7]
जरा सोचो
‘प्रभु’ को दिल से ‘याद’ कीजिए , तकरीबन ‘औढ’ लीजिए,
‘आंतरिक शक्ति’ बढ़ जाएगी, कुछ ‘मांगने’ की जरूरत नहीं’ !
[8]
जरा सोचो
‘घर की लड़की’ से कहते हो , ‘ इज्जत ‘ खराब मत करना ,
‘बेटे’ से भी कह देते, किसी की ‘इज्जत’ से ‘खिलवाड़’ मत करना’ !
[9]
जरा सोचो
‘बिना करे’ किसी को कुछ नहीं मिलता,
‘हाथ की लकीरों’ में ‘कर्म रंग’ भरते रहो’ !
[10]
जरा सोचो
‘सपने’ देखते रहे, ‘नींद’ हराम कर ली, बड़े ‘खडूस’ प्राणी हो,
‘कुछ करके’ भी खा लेते , ‘जीना’ बेमुहाल नहीं होता कभी’ !