[1]
जरा सोचो
‘मैं ‘साफगोई’ का पक्षधर हूं ,’यद्यपि ‘दुश्मन’ बढ़ जाएंगे,
‘ सभी से ‘ स्नेह ‘ करता हूं ,’ झूठ ‘ बोला ही नहीं जाता ‘ !
[2]
जरा सोचो
‘इच्छाएं ‘ पाले रहे और ‘प्राण’ निकल गए, ‘तो समझो ‘मृत्यु’ हो गई,
‘जो ‘ इच्छा रहित ‘ मरते हैं ,’ मोक्ष ‘ उनको ही मिलता है ‘ !
[3]
जरा सोचें
‘ बूंदे ‘ जब सीपी ‘ पर गिरी , ‘ मोती ‘ बनकर ही उभरी,
‘गरम तवे’ पर जा गिरी तो, ‘अस्तित्व’ ही मिट गया उसका’ !
[4]
जरा सोचो
‘ जीवन ‘ और ‘ मृत्यु ‘ तो ‘ भाग्य और समय ‘ का खेल है,
‘दिलों में जगह’ बनाने का खेल, ‘सिर्फ ‘कर्माधीन’ होता है’ !
[5]
जरा सोचो
‘सद्गुरु’ से मिले तो ‘भगवान के दर्शन ‘ का लाभ मिला,
‘चांडाल’ से मिले तो ‘कोड़े पड़े’, ‘ नर्कगामी ‘ ही बने ‘ !
[6]
‘जब तक माँ-बाप जिंदा हैं ‘,
‘जन्नत का मज़ा है ‘,
‘उनकी छाया खतम तो ,
‘तेरी जन्नत भी खतम ‘|
[7]
जरा सोचो
‘मन ‘आहत’ था, कोई अपना ‘दिल तोड़ कर’ चला गया था,
‘जो ‘मरहम’ लगाने आए थे, ‘ वह भी जख्म’ ही देते गए’ !
[8]
जरा सोचो
‘जल’ और ‘संबंध’ का न कोई ‘रंग’ है, न कोई ‘स्वरूप’,
‘दोनों के बिना’ कोई जीवन नहीं, ‘ गजब इत्तेफाक है’ !
[9]
जरा सोचो
‘दिल में दूरियां’ बनी रहेगी तो, ‘नज़दीकियों’ का वजूद कहां है’?
‘स्नेह’ का ‘आदान-प्रदान’ ही सबको ‘एक धागे’ में बांधे रखता है’ !
[10]
जरा सोचो
‘निस्वार्थ भाव’ की ‘ सेवा और प्रार्थना ‘ जल्दी स्वीकारते हैं प्रभु ,
‘सब कुछ ‘हासिल’ करने के प्रयास में हम, सब कुछ ‘भूल’ जाते हैं’ !