Home ज़रा सोचो ” जरा सोचो ” ‘कुछ विसंगतियाँ ‘ जिन पर हमारा ध्यान नहीं जाता ” |

” जरा सोचो ” ‘कुछ विसंगतियाँ ‘ जिन पर हमारा ध्यान नहीं जाता ” |

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[1]

जरा सोचो
‘मैं’  हर  सजा  को  ‘सिर  झुका’  कर, ‘कबूल’  करता  गया,
‘किसी  ने’ यह  नहीं  देखा, ‘ बेकसूर ‘  था ‘ मैं ‘  हर  जगह’ !

[2]

जरा सोचो
‘मोहब्बत  का  आगाज, ‘अजनबी’  को  भी  अपना  बनाता  है,
‘इंसान  तो  इंसान  है, ‘भगवान’  भी  वशीभूत’  होते  आए  हैं’ !

[3]

जरा सोचो
‘जिस  पल  हमें  ‘याद’  किया  गया, ‘वह  पल ‘यादगार’ बन  गया,
‘नाराजगी’  का  सिलसिला  भी  टूटा,’ हम  ढंग  से  भी  जीने  लगे’ !

[4]

जरा सोचो
‘नेक  इरादे ‘  देख  कर  भी , हमारी  ‘ खिलाफत ‘  किसलिए ?
‘शायद ‘नकारात्मकता” भारी है, ‘सुविचारी’ बनने नहीं देती’ !

[5]

जरा सोचो
‘गुरुर’  में  ही  रहते  हो , ‘ दिलों ‘ में  जगह  बनाते  ही  नहीं,
‘जरा  धरती  पर ‘उतर’  आओ, ‘इंसान’ बन  कर  दिखाओ’ !

[6]

जरा सोचो
‘मां-बाप’  की  ‘वसीयत’  पर  ध्यान  है , ‘ नसीहत ‘  भूल  जाते  हैं,
‘भूल  गए’- ‘मां-बाप’  ने  ही  सही  ‘ जीना  सिखाया’  है  हमको ‘ !

[7]

‘सताने  की  फितरत  हो  जिनकी’ ,
‘लाख  मनाओ  , सुनते  ही  नहीं ‘,
‘ वो  बार – बार  याद  आते  रहे ‘ ,
‘हमारी कोशिश थी भूल जाने की ‘|

[8]

जरा सोचो
‘हम  उनकी  ‘ याद ‘  में ‘ राख ‘  बनते  चले  गए,
‘ना  उनका ‘दिल’ पसीजा,’ न  सामने आए कभी’ !

[9]

जरा सोचो
‘दुख’  तुम्हीं  ने  पैदा  किया  है,
‘उसको  ‘दूर’  भी  तुम  ही  करोगे,                                                                                                                                                                                        ‘दुनियादारी”  की  पिपासा  छोड़ ,
‘संघर्ष ‘  का  दामन  पकड़ ‘ !

[10]

जरा सोचो
‘घर – गृहस्थी  और  दुनियादारी , ‘ सब  कुछ  मिल  ही  जाता  है,
‘यदि ‘स्वास्थ्य’ नहीं बचा पाए तो, ‘समझो ‘दुनिया’ हार दी तुमने’ !

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