[1]
‘सादगी और सहजता’ को सामान्य जीवन का हिस्सा जानकर जीयें ,’
‘जनबल , धनबल ,बाहुबल ‘ ‘खूबसूरत जीवन के पहलू नज़र नहीं आते’|
[2]
‘सबकी भलाई में ही हमारी भलाई छिपी रहती है ,’सभी जानते हैं’ ,
‘फिर भी दुष्कर्मों से सज़े रहते हो’ ,’शर्म नाम की चीज नहीं ‘
[3]
‘थोड़ा नुकसान सह कर भी’ ‘जो भला कर्म करना नहीं छोडते ,’
‘ वो लोग ‘,’अंधकार में आशा की किरण बन कर उभरते हैं ‘|
[4]
‘तुम्हारा केवल अपने बारे में सोच कर जीना भी कोई जीना है ,’
‘परोपकार,उद्धारक,कल्याणकारी’,’ बनने की कोशिश तो कर’ ,
‘तन, मन , धन का स्दुपयोग , ‘नेकी के रास्ते पर ले जाएगा’ ,
‘जब मिट्टी में मिल जाएगा’,’कौन पुछेगा’-तू परोपकार कर ‘|
[5]
मेरा विचार —
” गंभीर बातों के समय ‘खाना-पीना’ ,और खाते-पीते समय ‘गंभीर बात’ करना कदाचित उचित नहीं |
हर बात का समय होता है , उचित- अनुचित कुछ भी घट सकता है | इसीलिए समयानुसार ‘ सार –
गर्भित ‘ संवाद ‘, शालीनता के परिचायक हैं ” |
[6]
‘जीवन में कितनी अनचाही होती है
कितनी विपदाओं से सामना होता है,
‘प्यार ,नम्रता ,सब्र ,संतोष जैसे विशाल
गुणों को अपनाने की जरूरत है ” |
[7]
‘जो स्नेह को स्नेह से सींचे’ ‘वह स्नेह का विस्तार करता है’ ,
‘जो जलेकटे बाणों से श्री गणेश करता हो’ ‘मानवता नहीं होती ‘|
[8]
‘बात कहने से पहले काट देते हैं ,
‘रूबरूँ होने का मौका ही नहीं देते ,,
‘आजकल सभी मगरूर रहते हैं ,
‘किसकी कौन सुनता है बता ‘ ?
[9]
‘पति बाहर कितना भी अक्खड़ हो’ ,’घर में शांत मिलता है ,’
‘क्योंकि -उसे शान्त,चुप व नियंत्रित करने का रिमोट घर में है ‘|
[10]
‘जरा हट कर प्रयास उत्तम है’ ,
‘चाहे तू ‘सोना’ बन कर उभर’ ,
‘या जीवन सोने में निकाल दे ‘|
‘डर को चुनौती समझ कर’ ‘ललकारते हुए सदा आगे बढ़ो’|