Home कविताएं ‘ जरा सोचें , हम किधर जा रहे हैं ‘ !

‘ जरा सोचें , हम किधर जा रहे हैं ‘ !

0 second read
0
0
982

[1]

‘कोई  प्रशंसा  करे  या  बुराई’ ,’दुःख  हो  या  सुख’,’जो  सम  अवस्था  में  रहते  है ,’
‘ उनका  विश्वास  नहीं  डगमगाता ‘,’ भक्ति  मार्ग  से  कभी  विचलित  नहीं  होते ‘ |

[2]

‘जहां  इंसान  को  नींद  की  गोली  भी  शांति  नहीं  दे  पाती ,’
‘कथा  के  बिस्तर  पर  लौटते  ही  फौरन  नींद  घेर  लेती  है ‘|

[3]

‘अज्ञान  की  महमारी  न  फैले  इसलिए’ ‘संत  समाज  में  जा  कर  ज्ञान  देते  है’, 
‘राम ,कृष्ण ,बुद्ध ,नानक ,कबीर  ने’ ‘समाज  में  रह कर  आत्मज्ञान  को  बांटा’ |

[4]

‘आपके  स्नेह  के  मारे  हुए  हैं  तभी  तो  आप  से  जुड़े  हैं ‘, 
‘अगर  दिल  में  जगह  नहीं  होती  ‘, ‘ बिछुड़  गए  होते ‘ |

[5]

‘हम  धर्म  के  लिए  बोल  देंगे ‘,’लड़  लेंगे ,मर  भी  जाएंगे ,’
‘धर्म को जीवन में उतारेंगे नहीं’ ,’इस सत्य को स्वीकारिए ‘|

[6]

‘रुपयों  से  वस्तु  श्रेष्ठ  है’ ,’वस्तु  से  व्यक्ति  श्रेष्ठ  है’ और ‘व्यक्ति  से  विवेक  श्रेष्ठ  है ,’
‘विवेक  से  परम  तत्व  श्रेष्ठ  है’,’फिर  भी  बुद्धि  रुपयों  मे  अटकी  हुई  है  आपकी’ ।

[7]

‘पाई-पाई जोड़ खजाना भरता गया’ ,न कुछ खाया न किसी को खाने दिया’, 

‘बिदाई  सबकी  निश्चित  है , आ भी  गयी’,’भरे  चोबारे ,यहीं  पर  रह  गए ‘|
[8]
 ‘गुस्सा ,नफरत , और  ईर्ष्या ,विध्वंसकारी  भावनाएं  हैं, संकट  हैं ,
‘इनसे अधिकतर त्रस्त मिलते हैं ,’खुशहाली  तनाव में  डूब जाती है ‘|
Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…