जरा सोचो
‘गलत आदमी’ से बहस करने से बेहतर है , ‘ सही आदमी ‘ से तालमेल ,
‘अर्थ रहित’ शब्दों के प्रयोग से, ‘सार्थक शांति’ का प्रयास बेहतर है ‘ !
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जरा सोचो
‘आरक्षण‘ का ‘विनाश’ नहीं हुआ , तो ‘देश का विनाश’ निश्चित है,
‘सख्त कानून’ की जरूरत है, ‘असली जामा’ पहनाए सरकार जी’ !
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जरा सोचो
‘उम्र’ घटती जा रही है रात दिन, कब ‘मस्ती’ में झूमेगा बता ,?
‘भूखे’ को खिला दे, प्यासे को पिला दे , कुछ तो भला कर जा’ !
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जरा सोचो
‘पहले खुद अच्छे बनो , अच्छे ही मिलते जाएंगे ,
‘ जिन्हें ‘अच्छों की तलाश’ है ,’खाली हाथ नहीं लौटेंगे’ !
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जरा सोचो
‘जनसंख्या’ विस्फोट ‘ सितम से भीषणतम ‘ हो गया है ,
‘ इसके तुरंत ‘निस्तारण’ हेतु ‘सख्त कानून’ की जरूरत है’ !
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जरा सोचो
‘जरूरत से ज्यादा धन , लालच , आलस , अभिमान , ‘ इच्छाएं ,
ताकत , प्रेम , घृणा , अहम भाव , सब जहर ही तो है ‘ !
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जरा सोचो
‘जिनके लिए ‘हुस्न’ पर शबाब आया, वही ‘बिखर’ गया,
‘वाह रे किस्मत ! तू भी बेवजह ‘धोखा’ परोस देती है ‘ !
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जरा सोचो
‘ताउम्र’ ऑक्सीजन देने वाले ‘पेड़’ को हम ‘काट’ डालते हैं ,
”जब ‘डॉक्टर’ ऑक्सीजन देता है,’उसे ‘भगवान’ कहते नहीं थकते’ ‘
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जरा सोचो
‘विपरीत’ परिस्थितियों के विरुद्ध ‘लड़ना’ सीख लेना चाहिए,
‘गला काट प्रतिस्पर्धा’ में ‘आशावादी’ बने रहना बचा लेगा तुम्हें’ !
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‘खुलकर हंसने’ को ‘स्वास्थ्यवर्धक’ और ‘जीवनवर्धक’औषधि माने,